अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता॥ रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
तृतीय सोपान | Descent Third
श्री अरण्यकाण्ड | Shri Aranya-Kand
चौपाई :
अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता॥
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई॥1॥
भावार्थ:
फिर परम शीलवती और विनम्र श्री सीताजी अनसूयाजी (आत्रिजी की पत्नी) के चरण पकड़कर उनसे मिलीं। ऋषि पत्नी के मन में बड़ा सुख हुआ। उन्होंने आशीष देकर सीताजी को पास बैठा लिया॥1॥
English :
IAST :
Meaning :