असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥ संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 30.5| |Caupāī 30.5
असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥
संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥5॥
भावार्थ:-यह रामकथा असुरों की सेना के समान नरकों का नाश करने वाली और साधु रूप देवताओं के कुल का हित करने वाली पार्वती (दुर्गा) है। यह संत-समाज रूपी क्षीर समुद्र के लिए लक्ष्मीजी के समान है और सम्पूर्ण विश्व का भार उठाने में अचल पृथ्वी के समान है॥5॥
asura sēna sama naraka nikaṃdini. sādhu bibudha kula hita girinaṃdini..
saṃta samāja payōdhi ramā sī. bisva bhāra bhara acala chamā sī..
It is beneficent to pious souls-even as Goddess Parvati (the daughter of Himavan) is friendly to gods; again, it puts an end to hell even as Parvati exterminated the army of demons. It flows from the assemblage of saints, even as Laksmi (the goddess of wealth) sprang from the ocean; and like the immovable earth it bears the burden of the entire creation.