अस कहि पग परि प्रेम अति सिय हित बिनय सुनाइ। सिय समेत सियमातु तब चली सुआयसु पाइ॥285॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
अस कहि पग परि प्रेम अति सिय हित बिनय सुनाइ।
सिय समेत सियमातु तब चली सुआयसु पाइ॥285॥
भावार्थ:
ऐसा कहकर बड़े प्रेम से पैरों पड़कर सीताजी (को साथ भेजने) के लिए विनती करके और सुंदर आज्ञा पाकर तब सीताजी समेत सीताजी की माता डेरे को चलीं॥285॥
English :
IAST :
Meaning :