अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥ काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई1 |Caupāī 1
अस बिबेक जब देइ बिधाता। तब तजि दोष गुनहिं मनु राता॥
काल सुभाउ करम बरिआईं। भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाईं॥1॥
भावार्थ:-विधाता जब इस प्रकार का (हंस का सा) विवेक देते हैं, तब दोषों को छोड़कर मन गुणों में अनुरक्त होता है। काल स्वभाव और कर्म की प्रबलता से भले लोग (साधु) भी माया के वश में होकर कभी-कभी भलाई से चूक जाते हैं॥1॥
asa bibēka jaba dēi bidhātā. taba taji dōṣa gunahiṃ manu rātā..
kāla subhāu karama bariāī. bhalēu prakṛti basa cukai bhalāī..
When Providence blesses one with such discrimination (as is possessed by the swan), then alone does the mind abandon evil and gets enamoured of goodness. By force of the spirit of the times, old habits and past Karma even the good deviate from goodness under the influence of Maya.