उठे लखनु प्रभु सोवत जानी। कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी॥ कछुक दूरि सजि बान सरासन। जागन लगे बैठि बीरासन॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
उठे लखनु प्रभु सोवत जानी। कहि सचिवहि सोवन मृदु बानी॥
कछुक दूरि सजि बान सरासन। जागन लगे बैठि बीरासन॥1॥
भावार्थ:
फिर प्रभु श्री रामचन्द्रजी को सोते जानकर लक्ष्मणजी उठे और कोमल वाणी से मंत्री सुमंत्रजी को सोने के लिए कहकर वहाँ से कुछ दूर पर धनुष-बाण से सजकर, वीरासन से बैठकर जागने (पहरा देने) लगे॥1॥
English :
IAST :
Meaning :