उर माझ गदा प्रहार घोर कठोर लागत महि पर्यो। दस बदन सोनित स्रवत पुनि संभारि धायो रिस भर्यो॥ द्वौ भिरे अतिबल मल्लजुद्ध बिरुद्ध एकु एकहि हनै। रघुबीर बल दर्पित बिभीषनु घालि नहिं ता कहुँ गनै॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
षष्ठः सोपानः | Descent 6th
श्री लंकाकाण्ड | Shri Lanka Kand
छंद :
उर माझ गदा प्रहार घोर कठोर लागत महि पर्यो।
दस बदन सोनित स्रवत पुनि संभारि धायो रिस भर्यो॥
द्वौ भिरे अतिबल मल्लजुद्ध बिरुद्ध एकु एकहि हनै।
रघुबीर बल दर्पित बिभीषनु घालि नहिं ता कहुँ गनै॥
भावार्थ:
बीच छाती में कठोर गदा की घोर और कठिन चोट लगते ही वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसके दसों मुखों से रुधिर बहने लगा, वह अपने को फिर संभालकर क्रोध में भरा हुआ दौड़ा। दोनों अत्यंत बलवान् योद्धा भिड़ गए और मल्लयुद्ध में एक-दूसरे के विरुद्ध होकर मारने लगे। श्री रघुवीर के बल से गर्वित विभीषण उसको (रावण जैसे जगद्विजयी योद्धा को) पासंग के बराबर भी नहीं समझते॥
IAST :
Meaning :