करहिं प्रनाम नगर नर नारी। मुदित ब्रह्ममय बारि निहारी॥ करि मज्जनु मागहिं कर जोरी। रामचन्द्र पद प्रीति न थोरी॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
करहिं प्रनाम नगर नर नारी। मुदित ब्रह्ममय बारि निहारी॥
करि मज्जनु मागहिं कर जोरी। रामचन्द्र पद प्रीति न थोरी॥3॥
भावार्थ:
नगर के नर-नारी प्रणाम कर रहे हैं और गंगाजी के ब्रह्म रूप जल को देख-देखकर आनंदित हो रहे हैं। गंगाजी में स्नान कर हाथ जोड़कर सब यही वर माँगते हैं कि श्री रामचन्द्रजी के चरणों में हमारा प्रेम कम न हो (अर्थात बहुत अधिक हो)॥3॥
English :
IAST :
Meaning :