करि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा॥ फिरत अहेर राम छबि देखी। होहिं मुदित मृग बृंद बिसेषी॥1
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
करि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा॥
फिरत अहेर राम छबि देखी। होहिं मुदित मृग बृंद बिसेषी॥1॥
भावार्थ:
हाथी, सिंह, बंदर, सूअर और हिरन, ये सब वैर छोड़कर साथ-साथ विचरते हैं। शिकार के लिए फिरते हुए श्री रामचन्द्रजी की छबि को देखकर पशुओं के समूह विशेष आनंदित होते हैं॥1॥
English :
IAST :
Meaning :