कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित। प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
तृतीय सोपान | Descent Third
श्री अरण्यकाण्ड | Shri Aranya-Kand
सोरठा :
कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित।
प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम॥2॥
भावार्थ:
उसने मोहवश द्रोह किया था, इसलिए यद्यपि उसका वध ही उचित था, पर प्रभु ने कृपा करके उसे छोड़ दिया। श्री रामजी के समान कृपालु और कौन होगा?॥2॥
English :
IAST :
Meaning :