केहरि कंधर बाहु बिसाला। उर अति रुचिर नागमनि माला॥ सुभग सोन सरसीरुह लोचन। बदन मयंक तापत्रय मोचन॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
केहरि कंधर बाहु बिसाला। उर अति रुचिर नागमनि माला॥
सुभग सोन सरसीरुह लोचन। बदन मयंक तापत्रय मोचन॥3॥
भावार्थ:
सिंह के समान (पुष्ट) गर्दन (गले का पिछला भाग) है, विशाल भुजाएँ हैं। (चौड़ी) छाती पर अत्यन्त सुंदर गजमुक्ता की माला है। सुंदर लाल कमल के समान नेत्र हैं। तीनों तापों से छुड़ाने वाला चन्द्रमा के समान मुख है॥3॥
English :
IAST :
Meaning :