कैकइ जठर जनमि जग माहीं। यह मोहि कहँ कछु अनुचित नाहीं॥ मोरि बात सब बिधिहिं बनाई। प्रजा पाँच कत करहु सहाई॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
कैकइ जठर जनमि जग माहीं। यह मोहि कहँ कछु अनुचित नाहीं॥
मोरि बात सब बिधिहिं बनाई। प्रजा पाँच कत करहु सहाई॥4॥
भावार्थ:
कैकयी के पेट से जगत् में जन्म लेकर यह मेरे लिए कुछ भी अनुचित नहीं है। मेरी सब बात तो विधाता ने ही बना दी है। (फिर) उसमें प्रजा और पंच (आप लोग) क्यों सहायता कर रहे हैं?॥4॥
English :
IAST :
Meaning :