को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥ देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 20.2| |Caupāī 20.2
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥2॥
भावार्थ:-इन (नाम और रूप) में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है। इनके गुणों का तारतम्य (कमी-बेशी) सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे। रूप नाम के अधीन देखे जाते हैं, नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता॥2॥
kō baḍa chōṭa kahata aparādhū. suni guna bhēda samujhihahiṃ sādhū..
dēkhiahiṃ rūpa nāma ādhīnā. rūpa gyāna nahiṃ nāma bihīnā..
It is presumptuous on one’s part to declare as to which is superior or inferior. Hearing the distinctive merits of both, pious souls will judge for themselves. Forms are found to be subordinate to the name; without the name you cannot come to the knowledge of a form.