कौसल्यादि मातु सब धाई। निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
कौसल्यादि मातु सब धाई।
निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई॥5॥
भावार्थ:
कौसल्या आदि माताएँ ऐसे दौड़ीं मानों नई ब्यायी हुई गायें अपने बछड़ों को देखकर दौड़ी हों॥5॥
IAST :
Meaning :