गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥ सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 14(छ.2)| Caupai 14(cha.2)
गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥2॥
भावार्थ:-श्री महेश और पार्वती को मैं प्रणाम करता हूँ, जो मेरे गुरु और माता-पिता हैं, जो दीनबन्धु और नित्य दान करने वाले हैं, जो सीतापति श्री रामचन्द्रजी के सेवक, स्वामी और सखा हैं तथा मुझ तुलसीदास का सब प्रकार से कपटरहित (सच्चा) हित करने वाले हैं॥2॥
gura pitu mātu mahēsa bhavānī. pranavauom dīnabaṃdhu dina dānī..
sēvaka svāmi sakhā siya pī kē. hita nirupadhi saba bidhi tulasīkē..
I adore the great Lord Siva and His consort Goddess Bhavani (Parvati), my preceptors and parents, friends of the forlorn and ever given to charity, servants, masters and friends of Sita’s Lord, and true benefactors of Tulasidasa in everyway.