ग्राम निकट जब निकसहिं जाई। देखहिं दरसु नारि नर धाई॥ होहिं सनाथ जनम फलु पाई। फिरहिं दुखित मनु संग पठाई॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
ग्राम निकट जब निकसहिं जाई। देखहिं दरसु नारि नर धाई॥
होहिं सनाथ जनम फलु पाई। फिरहिं दुखित मनु संग पठाई॥4॥
भावार्थ:
जब वे किसी गाँव के पास होकर निकलते हैं, तब स्त्री-पुरुष दौड़कर उनके रूप को देखने लगते हैं। जन्म का फल पाकर वे (सदा के अनाथ) सनाथ हो जाते हैं और मन को नाथ के साथ भेजकर (शरीर से साथ न रहने के कारण) दुःखी होकर लौट आते हैं॥4॥
English :
IAST :
Meaning :