जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥ सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 7(घ).7| Caupāī 7 (Gha).7
जग बहु नर सर सरि सम भाई।
जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7॥
भावार्थ:-हे भाई! जगत में तालाबों और नदियों के समान मनुष्य ही अधिक हैं, जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं (अर्थात् अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होते हैं)। समुद्र सा तो कोई एक बिरला ही सज्जन होता है, जो चन्द्रमा को पूर्ण देखकर (दूसरों का उत्कर्ष देखकर) उमड़ पड़ता है॥7॥
jaga bahu nara sara sari sama bhāī. jē nija bāḍhai baḍhahiṃ jala pāī..
sajjana sakṛta siṃdhu sama kōī. dēkhi pūra bidhu bāḍhai jōī..
The world abounds in men who resemble lakes and rivers, that get swollen with their own rise when waters are added to them. There is some rare good soul like the ocean, which swells at the sight of the full moon.(7)