जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 17.4| | Caupāī 17.4
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥4॥
भावार्थ:-राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥4॥
janakasutā jaga janani jānakī. atisaya priya karunā nidhāna kī..
tākē juga pada kamala manāvauom. jāsu kṛpāom niramala mati pāvauom..
Janaki, daughter of Janaka and mother of the universe and the most beloved consort of Sri Rama, the Fountain of Mercy, I seek to propitiate the pair of Her lotus feet, so that by Her grace I may be blessed with a refined intellect.
Bgwn Ye kiss kand me hai kiss dohe ke ander
बालकाण्ड मे दोहा क्रमांक १७ की नीचे ४ चौपाई है
♥️🦚✨✨प्रणाम जी ✨✨🦚♥️