जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥ राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 21.3| |Caupāī 21.3
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥3॥
भावार्थ:-(संकट से घबड़ाए हुए) आर्त भक्त नाम जप करते हैं, तो उनके बड़े भारी बुरे-बुरे संकट मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं। जगत में चार प्रकार के (1- अर्थार्थी-धनादि की चाह से भजने वाले, 2-आर्त संकट की निवृत्ति के लिए भजने वाले, 3-जिज्ञासु-भगवान को जानने की इच्छा से भजने वाले, 4-ज्ञानी-भगवान को तत्व से जानकर स्वाभाविक ही प्रेम से भजने वाले) रामभक्त हैं और चारों ही पुण्यात्मा, पापरहित और उदार हैं॥3॥
japahiṃ nāmu jana ārata bhārī. miṭahiṃ kusaṃkaṭa hōhiṃ sukhārī..
rāma bhagata jaga cāri prakārā. sukṛtī cāriu anagha udārā..
If devotees in distress mutter the Name, their worst calamities of the gravest type disappear and they become happy. In this world there are four kinds of devotees† of Sri Rama; all the four of them are virtuous, sinless and noble.