जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना॥ औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 29.4| |Caupāī 29.4
जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना॥
औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना॥4॥
भावार्थ:-वे अपने ज्ञान से तीनों कालों की बातों को हथेली पर रखे हुए आँवले के समान (प्रत्यक्ष) जानते हैं। और भी जो सुजान (भगवान की लीलाओं का रहस्य जानने वाले) हरि भक्त हैं, वे इस चरित्र को नाना प्रकार से कहते, सुनते और समझते हैं॥4॥
jānahiṃ tīni kāla nija gyānā. karatala gata āmalaka samānā..
aurau jē haribhagata sujānā. kahahiṃ sunahiṃ samujhahiṃ bidhi nānā..
Like a emblic myrobalan fruit placed on one’s palm, they hold the past, present and future within their knowledge. Besides these, other enlightened devotees of Sri Hari too recite, hear and understand this story in diverse ways.