जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई। मोरें मन प्रतीति अति सोई॥ तब संकर देखेउ धरि ध्याना। सतीं जो कीन्ह चरित सबु जाना॥2
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 55.2 | Caupāī 55.2
जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई। मोरें मन प्रतीति अति सोई॥
तब संकर देखेउ धरि ध्याना। सतीं जो कीन्ह चरित सबु जाना॥2॥
भावार्थ:-आपने जो कहा वह झूठ नहीं हो सकता, मेरे मन में यह बड़ा (पूरा) विश्वास है। तब शिवजी ने ध्यान करके देखा और सतीजी ने जो चरित्र किया था, सब जान लिया॥2॥
jō tumha kahā sō mṛṣā na hōī. mōrēṃ mana pratīti ati sōī..
taba saṃkara dēkhēu dhari dhyānā. satīṃ jō kīnha carita saba jānā..
What You said cannot be untrue; I am fully convinced in my heart.” Lord Sankara then looked within by contemplation and came to know all that Sati had done.