तब मुनि हृदयँ धीर धरि गहि पद बारहिं बार। निज आश्रम प्रभु आनि करि पूजा बिबिध प्रकार॥10॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
तृतीय सोपान | Descent Third
श्री अरण्यकाण्ड | Shri Aranya-Kand
दोहा :
तब मुनि हृदयँ धीर धरि गहि पद बारहिं बार।
निज आश्रम प्रभु आनि करि पूजा बिबिध प्रकार॥10॥
भावार्थ:
तब मुनि ने हृदय में धीरज धरकर बार-बार चरणों को स्पर्श किया। फिर प्रभु को अपने आश्रम में लाकर अनेक प्रकार से उनकी पूजा की॥10॥
English :
IAST :
Meaning :