तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन। बैठे बट तर करि कमलासन॥ संकर सहज सरूपु सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (57.4) | Caupāī (57.4)
तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन। बैठे बट तर करि कमलासन॥
संकर सहज सरूपु सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा॥4॥
भावार्थ:-वहाँ फिर शिवजी अपनी प्रतिज्ञा को याद करके बड़ के पेड़ के नीचे पद्मासन लगाकर बैठ गए। शिवजी ने अपना स्वाभाविक रूप संभाला। उनकी अखण्ड और अपार समाधि लग गई॥4॥
tahaom puni saṃbhu samujhi pana āpana. baiṭhē baṭa tara kari kamalāsana..
saṃkara sahaja sarupa samhārā. lāgi samādhi akhaṃḍa apārā..
Then, recalling His vow, Sambhu sat down there under a banyan tree in the Yogic pose known as Padmasana (the pose of a lotus). Sarkara communed with His own Self and passed into an unbroken and indefinitely long Samadhi (trance).