तापस मुनि महिसुर सुनि देखी। भए प्रेम बस बिकल बिसेषी॥ समउ समुझि धरि धीरजु राजा। चले भरत पहिं सहित समाजा॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
तापस मुनि महिसुर सुनि देखी। भए प्रेम बस बिकल बिसेषी॥
समउ समुझि धरि धीरजु राजा। चले भरत पहिं सहित समाजा॥3॥
भावार्थ:
तपस्वी, मुनि और ब्राह्मण यह सब सुन और देखकर प्रेमवश बहुत ही व्याकुल हो गए। समय का विचार करके राजा जनकजी धीरज धरकर समाज सहित भरतजी के पास चले॥3॥
English :
IAST :
Meaning :