तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं। उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं॥ भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 10(ख).2 |Caupāī 10( Kha).2
तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं।
उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं॥
भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई॥2॥
भावार्थ:-इसी तरह, बुद्धिमान लोग कहते हैं कि सुकवि की कविता भी उत्पन्न और कहीं होती है और शोभा अन्यत्र कहीं पाती है (अर्थात कवि की वाणी से उत्पन्न हुई कविता वहाँ शोभा पाती है, जहाँ उसका विचार, प्रचार तथा उसमें कथित आदर्श का ग्रहण और अनुसरण होता है)। कवि के स्मरण करते ही उसकी भक्ति के कारण सरस्वतीजी ब्रह्मलोक को छोड़कर दौड़ी आती हैं॥2॥
taisēhiṃ sukabi kabita budha kahahīṃ. upajahiṃ anata anata chabi lahahīṃ..
bhagati hētu bidhi bhavana bihāī. sumirata sārada āvati dhāī..
Even so, the wise say, the outpourings of a good poet originate at one place (in the poet’s own mind) and exercise their charm elsewhere (on the mind of the admirer). Attracted by his devotion, Sarasvati (the goddess of poetry) comes with all speed from the abode of Brahma (the topmost heaven) at his very invocation.
भावार्थ:-इसी तरह, बुद्धिमान लोग कहते हैं कि सुकवि की कविता भी उत्पन्न और कहीं होती है और शोभा अन्यत्र कहीं पाती है (अर्थात कवि की वाणी से उत्पन्न हुई कविता वहाँ शोभा पाती है, जहाँ उसका विचार, प्रचार तथा उसमें कथित आदर्श का ग्रहण और अनुसरण होता है)। कवि के स्मरण करते ही उसकी भक्ति के कारण सरस्वतीजी ब्रह्मलोक को छोड़कर दौड़ी आती हैं॥2॥