निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार। कुंभकरन घननाद कर बल पौरुष संघार॥67 ख॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
दोहा :
निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार।
कुंभकरन घननाद कर बल पौरुष संघार॥67 ख॥
भावार्थ:
फिर राक्षसों और वानरों के युद्ध का अनेकों प्रकार से वर्णन किया। फिर कुंभकर्ण और मेघनाद के बल, पुरुषार्थ और संहार की कथा कही॥67 (ख)॥
IAST :
Meaning :