भरत राम गुन ग्राम सनेहू। पुलकि प्रसंसत राउ बिदेहू॥ सेवक स्वामि सुभाउ सुहावन। नेमु पेमु अति पावन पावन॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
भरत राम गुन ग्राम सनेहू। पुलकि प्रसंसत राउ बिदेहू॥
सेवक स्वामि सुभाउ सुहावन। नेमु पेमु अति पावन पावन॥2॥
भावार्थ:
भरतजी और श्री रामचन्द्रजी के गुण समूह की तथा प्रेम की विदेहराज जनकजी पुलकित होकर प्रशंसा कर रहे हैं। सेवक और स्वामी दोनों का सुंदर स्वभाव है। इनके नियम और प्रेम पवित्र को भी अत्यन्त पवित्र करने वाले हैं॥2॥
English :
IAST :
Meaning :