मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं। कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं॥ सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी। अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनी॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
छंद | Chhands
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं॥
सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी।
अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनी॥
भावार्थ:-ज्ञानी मुनि, योगी और सिद्ध निरंतर निर्मल चित्त से जिनका ध्यान करते हैं तथा वेद, पुराण और शास्त्र ‘नेति-नेति’ कहकर जिनकी कीर्ति गाते हैं, उन्हीं सर्वव्यापक, समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, मायापति, नित्य परम स्वतंत्र, ब्रह्मा रूप भगवान् श्री रामजी ने अपने भक्तों के हित के लिए (अपनी इच्छा से) रघुकुल के मणिरूप में अवतार लिया है।
muni dhīra jōgī siddha saṃtata bimala mana jēhi dhyāvahīṃ.
kahi nēti nigama purāna āgama jāsu kīrati gāvahīṃ..
sōi rāmu byāpaka brahma bhuvana nikāya pati māyā dhanī.
avatarēu apanē bhagata hita nijataṃtra nita raghukulamani..
He who has bodied Himself forth as the Jewel of Raghu’s race for the sake of His devotees is no other than the Supreme Eternal, who is all-pervading and ever free, who is the Ruler of all the worlds and the Lord of Maya, whom illumined sages, Yogis (mystics) and Siddhas (adepts) constantly meditate upon with their sinless mind and whose glory is sung by the Vedas as well as the Puranas and other scriptures in negative terms as ‘not this’.