मुनि सुतीक्ष्ष्ण द्वारा श्री राम स्तुति
मुनि सुतीक्ष्ष्ण द्वारा श्री राम स्तुति
कह मुनि प्रभु सुन बिनती मोरी । अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी ॥
महिमा अमित मोरि मति थोरी । रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी ॥
श्याम तामरस दाम शरीरम् । जटा मुकुट परिधन मुनिचीरम् ॥
पाणि चाप शर कति तुणीरम् । नौमि निरन्तर श्री रघुवीरम् ॥
मोह विपिन घन दहन कृशानुह । सन्त सरोरुह कानन भानुह ॥
निशिचर करि बरूथ मृगराजह ॥ त्रातु सदा नो भव खग बाजह ॥
अरुण नयन रजीव सुवेशम् । सिता नयन चकोर निशेशम् ।
हर हृदि मानस बाल मरालम् । नौमि राम उर बाहु विशालम् ॥
संसय सर्प ग्रसन उरगादह । शमन सुकर्कश तर्क विषदह ॥
भव भञ्जन रञ्जन सुर यूथह । त्रातु नाथ नो क्ऱ्६इपा वरूथह ॥
निर्गुण सगुण विषम सम रूपम् । ग़्यान गिरा गोतीतमनूपम् ॥
अमलम अखिलम अनवद्यम अपारम् । नौमि राम भञ्जन महि भारम् ॥
भक्त कल्प पादप आरामह । तर्जन क्रोध लोभ मद कामह ॥
अति नागर भव सागर सेतुह । त्रातु सदा दिनकर कुल केतुह ॥
अतुलित भुज प्रताप बल धामह । कलि मल विपुल विभञ्जन नामह ॥
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामह । सन्तत शम तनोतु मम रामह ॥
जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी । सब के हृदयं निर्न्तर बासी ॥
तदपि अनुज श्री सहित खरारी । बसतु मनसि सम काननचारी ॥
जे जानहिं ते जानहुं स्वामी । सगुन अगुन उर अन्तरजामी ॥
जो कोसलपति राजिव नयना । करौ सो राम हृदय मम अयना ॥
अस अभिमान जाइ जनि भोरे । मैं सेवक रघुपति पति मोरे।