मैं देखउँ तुम्ह नाहीं गीधहि दृष्टि अपार। बूढ़ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार॥28॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
चतुर्थ: सोपान | Descent 4th
श्री किष्किंधाकांड | Shri kishkindha-Kand
दोहा :
मैं देखउँ तुम्ह नाहीं गीधहि दृष्टि अपार।
बूढ़ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार॥28॥
भावार्थ:
मैं उन्हें देख रहा हूँ, तुम नहीं देख सकते, क्योंकि गीध की दृष्टि अपार होती है (बहुत दूर तक जाती है)। क्या करूँ? मैं बूढ़ा हो गया, नहीं तो तुम्हारी कुछ तो सहायता अवश्य करता॥28॥
English :
IAST :
Meaning :