राम जनमि जगु कीन्ह उजागर। रूप सील सुख सब गुन सागर॥ पुरजन परिजन गुरु पितु माता। राम सुभाउ सबहि सुखदाता॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
राम जनमि जगु कीन्ह उजागर। रूप सील सुख सब गुन सागर॥
पुरजन परिजन गुरु पितु माता। राम सुभाउ सबहि सुखदाता॥3॥
भावार्थ:
श्री रामचंद्रजी ने जन्म (अवतार) लेकर जगत् को प्रकाशित (परम सुशोभित) कर दिया। वे रूप, शील, सुख और समस्त गुणों के समुद्र हैं। पुरवासी, कुटुम्बी, गुरु, पिता-माता सभी को श्री रामजी का स्वभाव सुख देने वाला है॥3॥
English :
IAST :
Meaning :