लगे जनक मुनिजन पद बंदन। रिषिन्ह प्रनामु कीन्ह रघुनंदन॥ भाइन्ह सहित रामु मिलि राजहि। चले लवाइ समेत समाजहि॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
लगे जनक मुनिजन पद बंदन। रिषिन्ह प्रनामु कीन्ह रघुनंदन॥
भाइन्ह सहित रामु मिलि राजहि। चले लवाइ समेत समाजहि॥4॥
भावार्थ:
जनकजी (वशिष्ठ आदि अयोध्यावासी) मुनियों के चरणों की वंदना करने लगे और श्री रामचन्द्रजी ने (शतानंद आदि जनकपुरवासी) ऋषियों को प्रणाम किया। फिर भाइयों समेत श्री रामजी राजा जनकजी से मिलकर उन्हें समाज सहित अपने आश्रम को लिवा चले॥4॥
English :
IAST :
Meaning :