लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पंख परेउ संपाती॥ राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पंख परेउ संपाती॥
राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही॥4॥
भावार्थ:
राजा क्षण-क्षण में सोच से छाती भर लेते हैं। ऐसी विकल दशा है मानो (गीध राज जटायु का भाई) सम्पाती पंखों के जल जाने पर गिर पड़ा हो। राजा (बार-बार) ‘राम, राम’ ‘हा स्नेही (प्यारे) राम!’ कहते हैं, फिर ‘हा राम, हा लक्ष्मण, हा जानकी’ ऐसा कहने लगते हैं॥4॥
English :
IAST :
Meaning :