श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥ दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई3 |Caupāī 3
श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥
भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3॥
śrīgura pada nakha mani gana jōtī. sumirata dibya drṛṣṭi hiyaom hōtī..
dalana mōha tama sō saprakāsū. baḍaē bhāga ura āvai jāsū..
The splendor of gems in the form of nails on the feet of the blessed Guru unfolds divine vision in the heart by its very thought. The lustre disperses the shades of infatuation, highly blessed is he in whose heart it shines.