सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ। देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ॥ निज माया बलु हृदयँ बखानी। बोले बिहसि रामु मृदु बानी॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 52.3 | Caupāī 52.3
सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ। देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ॥
निज माया बलु हृदयँ बखानी। बोले बिहसि रामु मृदु बानी॥3॥
भावार्थ:-स्त्री स्वभाव का असर तो देखो कि वहाँ (उन सर्वज्ञ भगवान् के सामने) भी सतीजी छिपाव करना चाहती हैं। अपनी माया के बल को हृदय में बखानकर, श्री रामचंद्रजी हँसकर कोमल वाणी से बोले॥3॥
satī kīnha caha tahaomhuom durāū. dēkhahu nāri subhāva prabhāū..
nija māyā balu hṛdayaom bakhānī. bōlē bihasi rāmu mṛdu bānī..
Sats sought to practise deception even on Him: see how deep-rooted the nature of a woman is! Extolling in His heart the potency of His Maya (delusive power), Sri Rama smilingly accosted Her in a mild tone.