सती बसहिं कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं। मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं॥58॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
दोहा (58) | Dohas (58)
सती बसहिं कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं।
मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं॥58॥
भावार्थ:-तब सतीजी कैलास पर रहने लगीं। उनके मन में बड़ा दुःख था। इस रहस्य को कोई कुछ भी नहीं जानता था। उनका एक-एक दिन युग के समान बीत रहा था॥58॥
satī basahi kailāsa taba adhika sōcu mana māhiṃ.
maramu na kōū jāna kachu juga sama divasa sirāhiṃ..58..
Then Sati dwelt in Kailasa, Her mind grievously sorrowing. Nobody knew anything about what was going on in Her mind; but the days hung heavy on Her like so many Yugas or ages.