सभा सकल सुनि रघुबर बानी। प्रेम पयोधि अमिअँ जनु सानी॥ सिथिल समाज सनेह समाधी। देखि दसा चुप सारद साधी॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
सभा सकल सुनि रघुबर बानी। प्रेम पयोधि अमिअँ जनु सानी॥
सिथिल समाज सनेह समाधी। देखि दसा चुप सारद साधी॥1॥
भावार्थ:
श्री रघुनाथजी की वाणी सुनकर, जो मानो प्रेम रूपी समुद्र के (मंथन से निकले हुए) अमृत में सनी हुई थी, सारा समाज शिथिल हो गया, सबको प्रेम समाधि लग गई। यह दशा देखकर सरस्वती ने चुप साध ली॥1॥
English :
IAST :
Meaning :