सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥ जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई2 |Caupāī 2
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥2॥
भावार्थ:-वह रज सुकृति (पुण्यवान् पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥2॥
sukṛti saṃbhu tana bimala bibhūtī. maṃjula maṃgala mōda prasūtī..
jana mana maṃju mukura mala haranī. kiēom tilaka guna gana basa karanī..
It adorns the body of a lucky person even as white ashes beautify the person of Lord Siva, and brings forth sweet blessings and joys. It rubs the dirt off the beautiful mirror in