सेष सहस्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥ सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिन्धु सौमित्रि गुनाकर॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 16.4| Caupāī 16.4
सेष सहस्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥
सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिन्धु सौमित्रि गुनाकर॥4॥
भावार्थ:-जो हजार सिर वाले और जगत के कारण (हजार सिरों पर जगत को धारण कर रखने वाले) शेषजी हैं, जिन्होंने पृथ्वी का भय दूर करने के लिए अवतार लिया, वे गुणों की खान कृपासिन्धु सुमित्रानंदन श्री लक्ष्मणजी मुझ पर सदा प्रसन्न रहें॥4॥
sēṣa sahastrasīsa jaga kārana. jō avatarēu bhūmi bhaya ṭārana..
sadā sō sānukūla raha mō para. kṛpāsiṃdhu saumitri gunākara..
He is no other than the thousand-headed serpent-god, Sesa, the cause (support) of the universe, who came down to dispel the fear of the earth. May that son of Sumitra, an ocean of benevolence and a mine of virtues, be ever propitious to me.