सोच सुमंत्र बिकल दुख दीना। धिग जीवन रघुबीर बिहीना॥ रहिहि न अंतहुँ अधम सरीरू। जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
सोच सुमंत्र बिकल दुख दीना। धिग जीवन रघुबीर बिहीना॥
रहिहि न अंतहुँ अधम सरीरू। जसु न लहेउ बिछुरत रघुबीरू॥2॥
भावार्थ:
व्याकुल और दुःख से दीन हुए सुमंत्रजी सोचते हैं कि श्री रघुवीर के बिना जीना धिक्कार है। आखिर यह अधम शरीर रहेगा तो है ही नहीं। अभी श्री रामचन्द्रजी के बिछुड़ते ही छूटकर इसने यश (क्यों) नहीं ले लिया॥2॥
English :
IAST :
Meaning :