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इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

श्री हनुमान स्तुति संग्रह

हनुमानजी सहस्त्रनामावली (के 1000 नाम) हिन्दी में | Hanuman Sahasranamam 1008 Names

Spread the Glory of Sri SitaRam!

हनुमान सहस्त्रनामावली (1000 नाम) हिन्दी अर्थ सहित

1. हनुमान्: – विशाल और टेढी ठुड्डी वाले ।
2. श्रीप्रद: – शोभा प्रदन करने वाले ।
3. वायुपुत्र: – वायु के पुत्र
4. रुद्र: – जो रुद्र के अवतार हैं (हनुमान जी एकादश रुद्र हैं)
5. अनघ: -पाप से रहित
6. अजर: – वृद्धावस्था से रहित
7. अमृत्य: – मृत्यु से रहित
8. वीरवीर: – वीरों में अग्रणी
9. ग्रामवास: – गाँवों में निवास करने वाले
10. जनाश्रय:- समस्त जनों को आश्रय प्रदान करने वाले
11. धनद: -धन धान्य देनेवाले
12. निर्गुण: -सतोगुण,रजोगुण एवं तमोगुण से रहित ।
13. अकाय: -भौतिक देह से रहित ।
14. वीर: – पराक्रमी ।
15. निधिपति: – नवनिर्धायों के स्वामी ।
16. मुनि: – वेद शास्त्रों के गूहार्थ के ज्ञाता ।
17. पिंगाक्ष: – पीले-पीले नेत्रों वाले ।
18. वरद: – मनोवांछित वरदान देने वाले ।
19. वाग्मी: – कुशल वक्ता ।
20. सीताशोकविनाशन: – सीता जी के शोक को मिटाने वाले ।
21. शिव: – मंगलमय ।
22. सर्व: -सर्वस्वरूप ।
23. पर: – प्रकृति से भी परे ।
24. अव्यक्त: -अव्यक्त स्वरूपवाले ।
25. व्यक्ताव्यक्त: -जो श्रद्धालु भक्तों के समक्ष व्यक्त तथा अभक्त्जनों के लिए अव्यक्त है ।
26. रसाधर:- पृथ्वी को धारण करने वाले ।
27. पिंगरोम: -पीले रोम वाले ।
28. पिंगकेश: -पीले केशों वाले ।
29. श्रुतिगम्य: -जो श्रुतियों द्वारा जानने योग्य है ।
30. सनातन: -सदैव विद्यमान रहने वाले ।
31. अनादि: – आदि से रहित ।
32. भगवान: -ऐश्वर्य मिक्त ।
33. देव:- अत्यंत दीप्त स्वरूप ।
34. विश्वहेतु: -जगत् के मूल कारण ।
35. निरामय: -नीरोग ।
36. आरोग्यकर्ता: – आरोग्य प्रदान करने वाले ।
37. विश्वेश:- विश्व के ईश्वर ।
38. विश्वनाथ: -संसार के स्वामी ।
39. हरीश्वर: -वानरों के स्वामी ।
40. भर्ग:- तेज स्वरूप ।
41. राम: – जिनमें भक्तलोग रमण करते हैं ।
42. रामभक्त:- राम के भक्त ।
43. कल्याणप्रकृति: – कल्याण करना जिनका सवभाव है ।
44. स्थिर: -पर्वत के समान अचल ।
45. विश्वम्भर: – विश्व का भरण –पोषण करनेवाले ।
46. विश्वमूर्ति: -विश्व जिनकी मूर्ति है।
47. विश्वाकार: – जो सर्वस्वरूप हैं ।
48. विश्वप: – जो विश्व का पालन करते हैं।
49. विश्वात्मा: -जो विश्व की आत्मा हैं।
50. विश्वसेव्य: -सारे विश्व के सेवनीय।
51. विश्व:- जो विश्व हैं।
52. विश्वहर: – विश्व के हर्ता ।
53. रवि: – सुर्यस्वरूप ।
54. विश्वचेष्ट: – विश्व के हित में चेष्टा करनेवाले ।
55. विश्वगम्य: -विश्व के प्राणिमात्र के प्राप्त करने योग्य ।
56. विश्वध्येय: -सबके ध्यान करने योग्य ।
57. कलाधर: – कलाओं को धारण करनेवाले ।
58. प्लवंगम: – उछलते- कूदते चलनेवाले ।
59. कपिश्रेष्ठ: – वानरों में श्रेष्ठ ।
60. ज्येष्ठ: – महान् ।
61. वैद्य: -भवरोग के चिकित्सक ।
62. वनेचर: – सीताजी की खोज में वन-वन भटकने वाले ।
63. बाल: – बालक के समान निश्चल अथवा बालरूप हो सुरसा के मुँह में प्रवेश करनेवाले ।
64. वृद्ध: – बढ़कर पर्वताकार होनेवाले ।
65. युवा: – सदा तरुण स्वरूप ।
66. तत्वम्: – संसार के कारण स्वरूप ।
67. तत्त्वगम्य: -तत्वरूप में जानने योग्य ।
68. सखा: -सबके सखा ।
69. अज: -अजन्मा ।
70. अञ्जनासूनु: – माता अञ्जना के पुत्र ।
71. अव्यग्र:- कभी व्यग्र न होनेवाले ।
72. ग्रामख्यात: – गाँव-गाँव में प्रसिद्ध ।
73. धराधर: – पृथ्वी को धारण करनेवाले- पर्वताकार ।
74. भू: – पृथ्वीलोकस्वरूप ।
75. भुव: – भुवर्लोकस्वरूप ।
76. स्व: – स्वर्गलोकस्वरूप ।
77. महर्लोक: – महर्लोकस्वरूप ।
78. जनलोक: – जनलोकस्वरूप ।
79. तप: तपोलोकस्वरूप ।
80. अव्यय: – अविनाशीस्वरूप ।
81. सत्यम्:- संतों के लिए हितकर ।
82. ॐकारगम्य: – ॐकारके द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
83. प्रणव: – ॐकारस्वरूप ।
84. व्यापक: – सर्वव्यापी ।
85. अमल: – दोषरहित ।
86. शिवधर्म प्रतिष्ठाता: – पाशुपत अथवा कल्याण- धर्म को प्रतिष्ठित करनेवाले ।
87. रामेष्ट:- जिनके श्रीराम इष्टदेव हैं ।
88. फाल्गुन प्रिय: -जो अर्जुन के प्रिय हैं ।
89. गोष्पदीकृतवारीश: – समुद्र को जलपूरित गोपद के समान लाँघनेवाले ।
90. पूर्णकाम: -जिनकी सारी कामनाएँ पूर्ण हैं।
91. धरापति: -पृथ्वी के स्वामी ।
92. रक्षोघ्न: -राक्षसों को मारनेवाले ।
93. पुण्डरीकाक्ष: – श्वेत कमल के समान नेत्रवाले ।
94. शरणागतवत्सल: – शरण में आए हुये पर कृपा करनेवाले ।
95. जानकीप्राणदाता: – जानकीको जीवन प्रदान करनेवाले ।
96. रक्षःप्राणापहारक: – राक्षसों का प्राण – नाश करनेवाले ।
97. पूर्ण:- पूर्णकाम ।
98. सत्य:- सत्यस्वरूप ।
99. पीतवासा: -पीला वस्त्र धारण करनेवाले ।
100.दिवाकर समप्रभ: – सूर्य के समान तेजस्वी ।

Hanuman Sahasranamam 1008 Names

101.देवोद्यानविहारी: – देवताओं के नंदन-वन में विहार करने वाले ।
102.देवताभयभञ्जन: – देकताओं के भय को नष्ट करनेवाले ।
103.भक्तोदयो: – भक्तों की उन्नति करनेवाले ।
104.भक्तलब्ध: – भक्तों के दवारा प्राप्त ।
105.भक्तपालन तत्पर: – भक्तों की रक्षा में तत्पर ।
106.द्रोणहर्ता:- द्रोणाचलको उखाड़कर लानेवाले ।
107.शक्तिनेता – शक्तियों के संचालक ।
108.शक्तिराक्षसमारक: -शक्तिशाली राक्षसों को मारनेवाले ।
109.अक्षघ्न: -अक्षकुमार को मारनेवाले ।
110.रामदूत: -भगवान श्री रामचंद्र के दूत ।
111.शाकिनी जीवहारक: – शाकिनी का प्राण हरण करनेवाले ।
112.बुबुकारहताराति: – बुबुकार-ध्वनि से शत्रुका नाश करनेवाले ।
113.गर्वपर्वत प्रमर्दन: -गर्वरूपी पर्वत्को चूर-चूर करनेवाले ।
114.हेतु: – कारणरूप ।
115.अहेतु: – कारणरहित ।
116.प्रांशु: – बहुत उन्नत ।
117.विश्वभर्ता: – विश्व का भरण पोषण करनेवाले ।
118.जगद्गुरु: – सारे संसार के गुरु ।
119.जगन्नेता: – संसार के नेता ।
120.जगन्नाथ: – संसार के स्वामी ।
121.जगदीश: – जगत् के ईश ।
122.जनेश्वर: – भक्तों के ईश्वर ।
123.जगद्धित: – संसार का हित करनेवाले ।
124.हरि: – पापों को हरनेवाले ।
125.श्रीश: – शोभा के स्वामी।
126.गरुडस्मय भञ्जन: – गरुड़ के गर्व को नष्ट करनेवाले ।
127.पार्थध्वज: – अर्जुन के ध्वज चिन्ह ।
128.वायुपुत्र: – वायु के पुत्र ।
129.अमितपुच्छ: – अपरिमित पूँछवाले ।
130.अमित विक्रम: – असीम पराक्रम वाले ।
131.ब्रह्मपुच्छ: – जिनकी पूँछ वर्द्धनशील है ।
132.परब्रह्मपुच्छ: – जिनका परब्रह्म आधार है ।
133.रामेष्टकारक: – जो श्रीरामके अभीष्ट कार्य को सिद्ध करते हैं ।
134.सुग्रीवादियुतो: – सुग्रीवादि वानरों से युक्त ।
135.ज्ञानी: – ज्ञान सम्पन्न ।
136.वानर: – वनमें रहनेवालों की रक्षा करनेवाले ।
137.वानरेश्वर: -वानरों के स्वामी ।
138.कल्पस्थायी: – कल्पपर्यंत रहनेवाले ।
139.चिरञ्जीवी: – चिरकालतक जीवित रहने वाले ।
140.तपन:- सुर्य सदृश तेजस्वी ।
141.सदाशिव: – सदा कल्याणस्वरूप ।
142.सन्नत: – विद्या के दवारा जो सम्यक् रूप से विनयानवत हैं ।
143.सद्गति: – संतों की गति हैं ।
144.भुक्तिमुक्तिद: – भुक्ति और मुक्ति को देनेवाले।
145.कीर्तिदायक: – कीर्तिप्रदान करनेवाले ।
146.कीर्ति: – कीर्तिस्वरूप ।
147.कीर्तिप्रद: – यशस्वी बनानेवाले ।
148.समुद्र: – जो श्रीराम की मुद्रा या मुद्रिका साथ लिये हुए हैं ।
149.श्रीपद: – बुद्धि या ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले ।
150.शिव: – संसार का उच्छेद करनेवाले ।
151.भक्तोदय: – भक्त के लिये प्रकट होनेवाले ।
152.भक्तगम्य: – भक्त द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
153.भक्तभाग्यप्रदायक: -भक्त के लिये भाग्य प्रदायक ।
154.उदधिक्रमण:- समुद्र लाँघने वाले ।
155.देव:- देवस्वरूप ।
156.संसारभयनाशन: – संसार का भयनाश करनेवाले ।
157.वार्धिबन्धनकृद्: – समुद्र पर सेतु बाँधनेवाले।
158.विश्वजेता: – विश्व को जीतनेवाले ।
159.विश्वप्रतिष्ठित: – विश्व में प्रतिष्ठित ।
160.लङ्कारि: – लंकाके शत्रु ।
161.कालपुरुष: – कालरूपी पुरुष।
162.लङ्केशगृह भञ्जन: – रावण के महलों को नष्ट करनेवाले ।
163.भूतावास: भूतों के आवास – स्थल हैं ।
164.वासुदेव: – विश्व में व्यापक ।
165.वसु: – वसुस्वरूप ।
166.त्रिभुवनेश्वर: – त्रिभुवन के स्वामी ।
167.श्रीरामस्वरूप: – जो श्री राम तुल्य हैं ।
168.कृष्ण:- चित्त को आकर्षित करनेवाले ।
169.लङ्काप्रासादभञ्जन: – लंका के राक्षसों के महलों का विध्वंस करनेवाले ।
170.कृष्ण: – कृष्णस्वरूप ।
171.कृष्णस्तुत: – कृष्ण के दवारा स्तुति किये गये ।
172.शान्त: – शांतस्वरूप ।
173.शान्तिपद: – शांति प्रदान करनेवाले ।
174.विश्वपावन: – विश्व को पवित्र करनेवाले ।
175.विश्वभोक्ता: – सारे भोग्य पदार्थों के भोक्ता ।
176.मारघ्न:- कामदेव का हनन करनेवाले ।
177.ब्रह्मचारी: – आजन्म ब्रह्मचारी ।
178.जितेन्द्रिय: – जिन्होंने इन्द्रियों को जीत लिया है ।
179.ऊर्ध्वग: – आकाश-मार्ग से गमन करनेवाले ।
180.लाङ्गुली: – बड़ी पूँछवाले ।
181.माली: – मालावाले ।
182.लाङ्गूलाहत राक्षस: – पूँछ से राक्षसों को मार डालनेवाले ।
183.समीरतनुज: – वायुदेवता के पुत्र ।
184.वीर: – शौर्यशाली ।
185.वीरतार: – वीर शत्रुओं को मारकर तारनेवाले ।
186.जयप्रद: – जय प्रदान करनेवाले ।
187.जगन्मङ्गलद: – जगत् को मङ्गल प्रदान करनेवाले ।
188.पुण्य: – भगवन्नाम- संकीर्तन से विश्वको पवित्र करनेवाले
189.पुण्यश्रवण कीर्तन: – जिनकी कथाओं का श्रवण – कीर्तन पुण्य प्रद है ।
190.पुण्यकीर्ति: – जिनका यशोगान पुण्यप्रद है।
191.पुण्यगति: – जिनकी उपासना पुण्य का फल है ।
192.जगत्पावनापावन: – जो जगत् को पवित्र करनेवालोंको पावन बनाते हैं ।
193.देवेश: – देवताओं के स्वामी ।
194.जितमार:- कामदेव को जीतनेवाले ।
195.रामभक्ति विधायक: – श्रीराम भक्ति का विधान करनेवाले ।
196.ध्याता: – रात- दिन श्रीराम का ध्यान करनेवाले ।
197.ध्येय: – मुनियों के द्वारा ध्येय ।
198.लय: – अपनेमें अखिल चराचर को विलीन करनेवाले ।
199.साक्षी: – सर्वद्रष्टा ।
200.चेता: – सर्वज्ञ ।

हनुमान जी के 1008 नाम हिंदी में

201.चैतन्य विग्रह: – चिन्मय शरीर वाले ।
202.ज्ञानद: – ब्रह्मज्ञान के दाता ।
203.प्राणद: -प्राण (बल) प्रदान करनेवाले ।
204.प्राण: – जिससे प्राणी प्राणवाले हैं , अर्थात् प्राणस्वरूप ।
205.जगत्प्राण: – जगत् के प्राण ।
206.समीरण: – वायुरूप ।
207.विभीषणप्रिय: – विभीषण के प्यारे ।
208.शूर: – शत्रुओं को रण में सुलानेवाले ।
209.पिप्पलाश्रय सिद्धिद: – ( आनन्दरामायण के मनोहरकाण्डके अनुसार ) अश्वत्थ को गृह मानकर साधना करनेवाले साधक को सारी सिद्धियों प्रदान करनेवाले ।
210.सिद्ध: -सिद्ध स्वरूप ।
211.सिद्धाश्रय: – सिद्धों के आश्रय ।
212.काल: – यमरूप ।
213.महोक्ष: – महान् धर्मरूपी बैलवाले 214.कालाजान्तक: – काल से उत्पन्न जरा- व्याधि आदि दोषों का अन्त करनेवाले ।
215.लङ्केशनिधनस्थायी: – रावण के विनाश के लिये स्थिरचित्त ।
216.लङ्कादाहक: – लंका को जलानेवाले ।
217.ईश्वर: – त्रिलोकी में परम ऐश्वर्यशाली ।
218.चन्द्रसूर्यग्निनेत्र: – चंद्र,सूर्य और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले शिवस्वरूप ।
219.कालाग्नि:- मृत्युकारी अग्निरूप ।
220.प्रलयान्तक: – प्रलय का अंत करनेवाले अर्थात् भक्तों को जन्म-मृत्यु से रहित करनेवाले।
221.कपिल: – काले- पीले वर्ण के रोम से युक्त ।
222.कपिश: – श्याम-पीतवर्ण मिश्रित कपिशवर्ण ।
223.पुण्य राशि: – पुण्यकी राशि ।
224.द्वादशराशिग: – द्वादश राशियों के ज्ञाता अर्थात् ज्योतिषशास्त्र के जाननेवाले ।
225.सर्वाश्रय: – सबके आश्रय स्थान ।
226.अप्रमेयात्मा: – अनुपम शरीरवाले ।
227.रेवत्यादिनिवारक: – रेवती-पूतना आदि ग्रह- दोषों का निवारण करनेवाले ।
228.लक्ष्मण प्राणदाता: – संजीवनी द्वारा लक्ष्मणा जी को प्राण देनेवाले ।
229.सीताजीवन हेतुक: – श्री जानकी जी को श्रीराम का संदेश देकर जीवन प्रदान करनेवाले ।
230.रामध्येय: – श्री राम जिनका ध्यान-स्मरण करते हैं ।
231.हृषिकेश: – इन्द्रियों के स्वामी ।
232.विष्णुभक्त: – विष्णुके भक्त ।
233.जटी: – जटावाले ।
234.बली – बलशाली ।
235.देवारिदर्पहा: – देवशत्रुओंके दर्प को नष्ट करनेवाले ।
236.होता – भगवद्भक्तिका अनुष्ठान करनेवाले ।
237.धाता: – जगत् को धारण करनेवाले ।
238.कर्ता: – जगत् को बनानेवाले ।
239.जगत्प्रभु: – जगत् के स्वामी ।
240.नगरग्रामपाल: – नगर और ग्रामवासियों की रक्षा करने वाले ।
241.शुद्ध: – शुद्धस्वरूप ।
242.बुद्ध: – ज्ञान स्वरूप ।
243.निरत्रप: – सलज्ज ।
244.निरञ्जन: -अज्ञान या माया से रहित ।
245.निर्विकल्प: – विकल्परहित ।
246.गुणातीत: – सत्त्वादि गुणों से रहित ।
247.भयङ्कर: – दुष्टों के लिये विकराल स्वरूपवाले ।
248.हनुमान् – श्री राम के अनुचर ।
249.दुराराध्य: – अभक्तों के लिये कष्ट से आराधनीय ।
250.तपःसाध्य: – तप के द्वारा साध्य ।
251.महेश्वर: – महान् ईश्वर ।
252.जानकीधनशोकोत्थतापहर्ता: – जानकीधन अर्थात् श्रीराम के शोक से उत्पन्न संताप को हरने वाले ।
253.परात्पर: – जो अव्यक्त से भी परे हैं ।
254.वाङ्मय: – वेदशास्त्र- सरस्वतीस्वरूप ।
255.सदसद्रूप: – सत् और असत् स्वरूप ।
256.कारणम्: – संसार के अभिन्न निमित्तोपादन कारण ।
257.प्रकृतेः पर: – जो त्रिगुणात्मिका प्रकृति से परे हैं ।
258.भाग्यद: – कर्मजन्य शुभाशुभ फलों को देनेवाले ।
259.निर्मल: – मल अर्थात् दोष से रहित ।
260.नेता: – मार्गदर्शक ।
261.पुच्छलङ्काविदाहक: – पुच्छ से लंकाको जलानेवाले ।
262.पुच्छबद्धयातुधान: -पुच्छ से राक्षसों को बाँधनेवाले ।
263.यातुधानरिपुप्रिय: – राक्षसों के शत्रु श्रीराम के प्रिय ।
264.छायापहारी: – छायानाम की राक्षसीको मारनेवाले।
265.भूतेश:- भूतों के स्वामी ।
266.लोकेश: – लोकों के स्वामी ।
267.सद्गतिप्रद: – संतों को सद्गति प्रदान करनेवाले ।
268.प्लवङ्गमेश्वर: – वानरों के स्वामी ।
269.क्रोध: – शत्रुओं के लिए क्रोधस्वरूप ।
270.क्रोध संरक्तलोचन: – युद्धकाल में क्रोध से लाल नेत्रवाले ।
271.सौम्य:- सौम्यस्वरूप ।
272.गुरु: – अज्ञान दूर करके परमात्मदर्शन करानेवाले ।
273.काव्यकर्ता: – कव्य-रचना करनेवाले।
274.भक्तानां वरप्रद: – भक्तों को अभीष्ट वर प्रदान करनेवाले ।
275.भक्तानुकम्पी: – भक्तों पर अनुकम्पा करनेवाले ।
276.विश्वेश: – विश्वके संचालक ।
277.पुरुहूत: – बहुत बार लोग जिनको पुकारते हैं ।
278.पुरन्दर: – शत्रुके नगरों को ध्वस्त करनेवाले ।
279.क्रोधहर्ता: – क्रोध को हरनेवाले ।
280.तमोहर्ता: – अज्ञानान्धकार को दूर करनेवाले ।
281.भक्ताभयवरप्रद: – भक्तों को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
282.अग्नि: – अग्निस्वरूप ।
283.विभावसु: – दिव्य तेज:स्वरूप्।
284.भास्वान्: – प्रकाशयुक्त ।
285.यम: – संयमस्वरूप ।
286.निर्ॠति: – नैर्ऋतगणके स्वामी ।
287.वरुण: – जल के देवता वरुणस्वरूप।
288.वायुगतिमान् : – वायुके समान गतिशील ।
289.वायु: – वायुपुत्र होने के कारण वायुस्वरूप ।
290.कौबेर ईश्वर: – कुबेर-सम्बन्धी धन के मालिक ।
291.रवि: – सुर्यस्वरूप ।
292.चन्द्र: – जगत् को आह्लादित करनेवाले चंद्रस्वरूप ।
293.कुज: – मंगल ग्रहस्वरूप ।
294.सौम्य: – बुधग्रहस्वरूप ।
295.गुरु: – बृहस्पतिग्रहस्वरूप ।
296.काव्य: – शुक्रग्रहस्वरूप ।
297.शनैश्चर: – शनिग्रहस्वरूप ।
298.राहु: – राहुग्रहस्वरूप ।
299.केतु: – केतुग्रहस्वरूप ।
300.मरुत्: – वायुस्वरूप ।
301.होता: – हवन करनेवाले ।
302.दाता: – भक्तों के भव-बंधन को काटनेवाले ।
303.हर्ता: – भक्तोंकी ममताको हरनेवाले ।
304.समीरज: – पवन देवता के पुत्र ।
305.मशकीकृतदेवारि: – देवताओं के शत्रुओं को मच्छरके समान समझनेवाले ।
306.दैत्यारि: – दैत्यों के शत्रु ।
307.मधुसूदन: – भक्तोंके अशुभ कर्मोंका विनाश करनेवाले ।
308.काम: – श्रीराम भक्तिकी कामना करनेवाले ।
309.कपि: – जल से पृथ्वीकी रक्षा करनेवाले ।
310.कामपाल: – वीर्यरक्षक अर्थात् ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले ।
311.कपिल: – कपिलमुनिस्वरूप ।
312.विश्वजीवन: – विश्व के जीवन ।
313.भागीरथीपदाम्भोज: – जिनके चरणकमल भागीरथीके समान पवित्र करनेवाले हैं ।
314.सेतुबन्धविशारद: – सेतु बांधने में चतुर ।
315.स्वाहा: – स्वाहास्वरूप ।
316.स्वधा: – स्वधा स्वरूप
317.हवि: – हवि:स्वरूप ।
318.कव्यम्: – पितरों को दिये जाने वाले अन्नादि रूप ।
319.हव्यवाहप्रकाशक: – देवताओंके लिये हव्य वहन करने वाले अग्नि के समान प्रकाशक ।
320.स्वप्रकाश: – स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
321.महावीर: – बड़े बलवान ।
322.लघु: – लघु रूप धारण करनेवाले ।
323.ऊर्जित:विक्रम: – सुदृढ़ा पराक्रमवाले ।
324.उड्डीनोड्डीनगतिमान्: – आकाशमें उड़नेवालों में तीव्रगतिशाली ।
325.सद्गति: – सम्यक रीतिसे चलनेवाले।
326.पुरुषोत्तम्: – पुरुषों में श्रेष्ठ ।
327.जगदात्मा: – जगत् – सवरूप ।
328.जगद्योनि: – जगत् के कारण ।
329.जगदन्त: – जगत् का अन्त करनेवाले ।
330.अनन्तक: – जिनके अनन्त गुण हैं ।
331.विपाप्मा: – पापरहित ।
332.निष्कलङ्क: – कलङ्करहित ।
333.महान्: – महत्तत्त्वस्वरूप ।
334.महदहङ्कृति: – महां अहंकारतत्वस्वरूप ।
335.खं: – आकाशतत्वस्वरूप ।
336.वायु: – वायुतत्वस्वरूप ।
337.पृथ्वी: – पृथ्वीतत्वस्वरूप ।
338.आप: – जलतत्वस्वरूप ।
339.वह्नि: – अग्नितत्वस्वरूप ।
340.दिक्पाल: – दिशाओंका पालन करनेवाले ।
341.क्षेत्रज्ञ: – क्षेत्रके ज्ञाता ।
342.क्षेत्रहर्ता: – क्षेत्र का हरण करनेवाले ।
343.पल्वलीकृतसागर: – सागर को लघु जलाशयरूप मानकर सरलतासे पार करनेवाले ।
344.हिरण्मय: – स्वर्ण के समान कांतिवाले ।
345.पुराण: – पुराणपुरुष ।
346.खेचर: – आकाश में विचरण करनेवाले।
347.भूचर: – पृथ्वीपर घूमनेवाले ।
348.अमर: – न मरनेवाले ।
349.हिरण्यगर्भ: – विश्वको उत्पन्न करनेवाले ब्रह्मास्वरूप ।
350.सूत्रात्मा: – सर्वव्यापक ।
351.विशाम्पति: राजराज: – मनुष्योंका पालन करनेवाले राजाधिराज ।
352.वेदान्तवेद्य: – वेदान्त शास्त्रद्वारा जानने योग्य ।
353.उद्गीथ: – ॐकारस्वरूप ।
354.वेदवेदाङ्ग पारग: – चारों वेदों और छहों वेदाङ्गों में पारंगत ।
355.प्रतिग्राम स्थिति: – प्रत्येक गाँव में स्थित रहनेवाले ।
356.सद्यः स्फूर्तिदाता: – तत्काल स्फूर्ति प्रदान करनेवाले ।
357.गुणाकार: – गुणोंकी खान ।
358.नक्षत्रमाली: – सत्ताईस नक्षत्रोंकी मालावाले ।
359.भूतात्मा: – प्राणियों की आत्मा ।
360.सुरभि: – कामधेनुस्वरूप ।
361.कल्पपादप: – भक्तों का मनोरथ पूर्ण करनेवाले कल्पवृक्षस्वरूप ।
362.चिन्तामणि: – चिंतामणिस्वरूप ।
363.गुणनिधि: – गुणोंकी खानि ।
364.प्रजाधार: – प्रजा के आधारभूत ।
365.अनुत्तम: – जिनसे उत्तम कोई नहीं है अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ।
366.पुण्यश्लोक: – पुण्यकीर्तिवाले ।
367.पुराराति: – पुरनामक राक्षस के शत्रु शिवस्वरूप ।
368.ज्योतिष्मान्: – ज्योति:स्वरूप ।
369.शर्वरीपति: – चन्द्रस्वरूप ।
370.किल्किलाराव सन्त्रस्त भूत प्रेत पिशाच: – किल-किल शब्दसे भूत-प्रेत- पिशाचादिको संत्रस्त करनेवाले ।
371.ऋणत्रयहर: – भक्तोंके तीनों ऋणों को हरनेवाले ।
372.सूक्ष्म: – सूक्ष्मस्वरूप ।
373.स्थूल: – स्थूलस्वरूप ।
374.सर्वगति: – सर्वत्र गतिवाले ।
375.पुमान्: – पुरुषार्थी ।
376.अपस्मारहर: – अपस्मार (मिरगीरोग ) को हरने वाले ।
377.स्मर्ता: – भगवान् का स्मरण करनेवाले ।
378.श्रुति: – वेदस्वरूप ।
379.गाथा: – स्तोत्रस्वरूप ।
380.स्मृति: – स्मृतिस्वरूप ।
381.मनु: – मंत्रस्वरूप ।
382.स्वर्गद्वारम्: – स्वर्ग के द्वारस्वरूप ।
383.प्रजाद्वार: – प्रजा अर्थात् संतति प्रदान करनेवाले ।
384.मोक्षद्वार: – मोक्ष प्रदान करनेवाले ।
385.यतीश्वर: – सन्यम करनेवालों में अतिश्रेष्ठ ।
386.नादरूप: – नाद-ब्रह्मस्वरूप ।
387.परम: – मोक्षस्वरूप।
388.परब्रह्म: – परब्रह्मस्वरूप
389.ब्रह्म: – सर्वव्यापक ।
390.ब्रह्मपुरातन: – आदिकारणरूप पुरातन ब्रह्म ।
391.एक: – अद्वितीय ।
392.अनेक: – अनेकरूप ।
393.जन: – भक्तस्वरूप ।
394.शुक्ल: – शुक्लस्वरूप ।
395.स्वयं ज्योति: – स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
396.अनाकुल: – व्याकुल न होनेवाले ।
397.ज्योति: – प्रकाशस्वरूप ।
398.अनादिर्ज्योति: – सब प्रकारकी ज्योतिके मूलभूत अनादि ज्योति ।
399.सात्त्विक: – सात्त्विक रूपमें पालनकर्ता ।
400.राजस: – राजसरूप में उत्पन्न करनेवाले ।

Hanuman Sahasranamam in Hindi

401.तम: – तमोरूप में संहारकर्ता ।
402.तमोहर्ता: – तमोगुणका नाश करनेवाले ।
403.निरालम्ब: – आश्रयरहित ।
404.निराकार: – आकाररहित ।
405.गुणाकार: – गुणोंकी खानि
406.गुणाश्रय: – तीनों गुणोंके आश्रय ।
407.गुणमय: – सद्गुणोंसे सम्पन्न ।
408.बृहत्कर्मा: – महान् कार्य करनेवाले ।
409.बृहद्यशा: – विस्तीर्ण कीर्तिवाले ।
410.बृहद्धनु: – बड़ी ठुड्डीवाले ।
411.बृहत्पाद: – लम्बी टाँगोंवाले ।
412.बृहन्मूर्धा: – बड़े मस्तकवाले ।
413.बृहत्स्वन: – बड़ा शब्द करनेवाले ।
414.बृहत्कर्ण: – बड़े कानवाले ।
415.बृहन्नास: – लम्बी नासिकावाले ।
416.बृहद्बाहु: – लम्बी भुजावाले ।
417.बृहत्तनु: -विशाल देहधारी ।
418.बृहज्जानु: – बड़े घुटनोंवाले ।
419.बृहत्कार्य: – महान् कार्य करनेवाले ।
420.बृहत्पुच्छ: – लम्बी पूँछवाले ।
421.बृहत्कर: – लम्बे हाथोंवाले ।
422.बृहद्गति: – तीव्र गतिवाले ।
423.बृहत्सेव्य: – महापुरुषों के द्वारा सेव्य ।
424.बृहल्लोक फलप्रद: – सम्पूर्ण लोकरूप फल देनेवाले ।
425.बृहच्छक्ति: – महान् शक्तिशाली ।
426.बृहद्वाञ्छाफलद: – बड़ी-बड़ी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले ।
427.बृहदीश्वर: – महान् सामर्थ्यवान ।
428.बृहल्लोकनुत: – असंख्य लोगोंके द्वारा नमस्कृत ।
429.द्रष्टा: – शुभाशुभ कर्मों को देखनेवाले ।
430.विद्यादाता: – विद्या प्रदान करनेवाले ।
431.जगद्गुरु: – जगत् को सन्मार्ग में लगानेवाले गुरु ।
432.देवाचार्य: – देवताओं के आचार्य ।
433.सत्यवादी: – सत्य बोलनेवाले ।
434.ब्रह्मवादी: – ब्रह्म (परमात्म ) – विषयक विवेचन करनेवाले ।
435.कलाधर: – कलाओं के ज्ञाता ।
436.सप्तपातालगामी: – सातों पातालोंमें विचरण करनेवाले ।
437.मलयाचल संश्रय: – मलयगिरिपर निवास करनेवाले ।
438.उत्तराशास्थित: – उत्तर दिशा में स्थित ।
439.श्रीद: – शोभा ( ऐश्वर्य ) प्रदान करनेवाले ।
440.दिव्यौषधिवश: – दिव्य औषधियों को वशीभूत करनेवाले ।
441.खग: – नभोमण्डल में विचरण करनेवाले ।
442.शाखामृग: – शाखाओं पर कूदनेवाले ।
443.कपीन्द्र: – वानरों के अधिपति ।
444.पुराण श्रुतिचञ्चुर: – श्रुति और पुराण की विशेष जानकारी रखनेवाले ।
445.चतुर ब्राह्मण: – निपुण ब्राह्मणस्वरूप ।
446.योगी: – योगसिद्ध ।
447.योगगम्य: – योगाभ्यास के द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
448.परावर: – विश्व के आदि और अंतस्वरूप ।
449.अनादिनिधन: – आदि-अंत से रहित ।
450.व्यास: – वेदों का विस्तार करनेवाले ।
451.वैकुण्ठ: – माया के प्रभाव से रहित 452.पृथिवीपति: – भूलोक के रक्षक ।
453.अपराजित: – शत्रुओं के द्वारा अजेय ।
454.जिताराति: – शत्रुओं को जीतनेवाले ।
455.सदानन्द: – सदा आनंदित रहनेवाले ।
456.दयायुत: – दयालु ।
457.गोपाल: – पृथ्वीका पालन करनेवाले ।
458.गोपति: – इन्द्रियों के स्वामी ।
459.गोप्ता: – भक्तों के रक्षक ।
460.कलिकाल पराशर: – कलिकाल के पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक ।
461.मनोवेगी: – मन के समान वेगवाले ।
462.सदायोगी: – सदा योगयुक्त रहनेवाले ।
463.संसार भय नाशन: – भवभय का नाश करनेवाले ।
464.तत्त्वदाता: – तत्वज्ञान के दाता ।
465.तत्त्वज्ञ: – तत्वज्ञानी ।
466.तत्त्वम्: – ब्रह्मस्वरूप ।
467.तत्त्व प्रकाश: – तत्व का प्रकाश करनेवाले ।
468.शुद्ध: – सबको पवित्र करनेवाले ।
469.बुद्ध: – ज्ञानवान् ।
470.नित्यमुक्त: – सदा मुक्तस्वरूप ।
471.भक्तराज: – भगवद्भक्तों में देदीप्यमान ।
472.जयद्रथ: – आक्रमण में जय प्राप्त करनेवाले ।
473.प्रलय: – शत्रुओं के लिये प्रलयंकर ।
474.अमितमाय: – अनंत माया जाननेवाले ।
475.मायातीत: – सर्वथा मायाजाल से रहित ।
476.विमत्सर: – ईर्ष्या से रहित्।
477.माया भर्जितरक्ष: – अपनी माया से राक्षसों को भून डालनेवाले ।
478.मायानिर्मित विष्टप: – माया से भुवनों की सृष्टि करनेवाले ।
479.मायाश्रय: – माया का आश्रय लेनेवाले ।
480.निर्लेप: – निरासक्त रहनेवाले ।
481.मायानिर्वर्तक: – माया शक्ति द्वारा कार्य सम्पन्न करनेवाले ।
482.सुखम्: – सुखस्वरूप।
483.सुखी: – सदा सुख से रहनेवाले ।
484.सुखप्रद: – सुख प्रदान करनेवाले ।
485.नाग: – नागस्वरूप ।
486.महेशकृतसंस्तव: – शंकरजी के द्वारा स्तुत ।
487.महेश्वर: – महान् ऐश्वर्यशाली ।
488.सत्यसन्ध: – सत्यवादी ।
489.शरभ: – शरभ नामक पशु के समान महान् बलशाली ।
490.कलिपावन: – कलियुग को पवित्र करनेवाले ।
491.सहस्रकन्धर बलविध्वंसन विचक्षण: – हजारों सिरवाले रावण के बल को विध्वंस करने में चतुर ।
492.सहस्रबाहु: – हजारों भुजाबाले ।
493.सहज: – सहज स्थितिस्वरूप।
494.द्विबाहु: – दो बाहुवाले ।
495.द्विभुज: – दो भुजाओंवाले ।
496. अमर: – अविनाशी।
497.चतुर्भुज: – चार भुजावाले ।
498.दशभुज: – दस भुजावाले ।
499.हयग्रीव: – अश्व के समान गर्दंवाले ।
500.खगानन: – गरुड़के समान मुखवाले ।
501.कपिवक्त्र: – कपि-सदृश मुखवाले ।
502.कपिपति: – वानरों की रक्षा करनेवाले ।
503.नरसिंह: – नरसिन्ह के समान विकराल रूप धारण करनेवाले ।
504. महाद्युति: – अत्यंत तेजस्वी ।
505.भीषण: – युद्ध में भयंकररूप ।
506.भावग: – भगवद्भाव को प्राप्त।
507.वन्द्य: – वंदना करने योग्य ।
508.वराह: – वराह – मुखवाले ।
509.वायुरूपधृक्: – वायु का रूप धारण करनेवाले ।
510.लक्ष्मण प्राणदाता: – लक्ष्मण को ( संजीवनी लाकर ) जिलानेवाले ।
511.पराजित दशानन: – दशानन (रावण ) – को पराजित करनेवाले ।
512.पारिजात निवासी: – पारिजात वृक्ष के नीचे निवास करनेवाले ।
513.वटु: – ब्रह्मचारीस्वरूप
514.वचन कोविद: – बोलने में अति चतुर ।
515.सुरसास्यविनिर्मुक्त: – सुरसा के मुख से सुखपूर्वक निकल आनेवाले ।
516.सिंहिका प्राणहारक: – सिंहि का राक्षसी का प्राण हरनेवाले ।
517.लङ्कालङ्कारविध्वंसी: – लंका की शोभा को नष्ट करनेवाले ।
518.वृषदंशकरूपधृक्: – वृषदंशक अर्थात् विडाल का रूप धारण करनेवाले ।
519.रात्रिसंचार कुशल: – रात में घूमने में चतुर ।
520.रात्रिंचरगृहाग्निद: – राक्षसों के घरों में आग लगानेवाले ।
521.किङ्करान्तकर: – रावण के सेवकों को मार डालनेवाले ।
522.जम्बुमालिहक्ता: – जम्बुमाली राक्षस को मारनेवाले ।
523.उग्ररूपधृक्: – उग्ररूप धारण करनेवाले ।
524.आकाशचारी: – आकाश में विचरण करनेवाले ।
525.हरिग: – प्रभु को प्राप्त करनेवाले ।
526.मेघनादरणोत्सुक: – मेघनाद के साथ युद्ध करने के लिये उत्कण्ठित ।
527.मेघगम्भीरनिनदो: – बादल के समान गम्भीर शब्द करनेवाले ।
528.महारावणकुलान्तक: ‌- महारावण के कुल को नष्ट करनेवाले ।
529.कालनेमिप्राणहारी: – कालनेमि राक्षस का प्राण हरनेवाले ।
530.मकरीशापमोक्षद: – मकरी को शाप से मुक्त करनवाले ।
531.रस: – रसस्वरूप ।
532.रसज्ञ: – रस को जाननेवाले।
533.सम्मान: – प्रभुका सम्यक् सम्मान करनेवाले ।
534.रूपम् – रूप स्वरूप ।
535.चक्षु: – चक्षुस्वरूप ।
536.श्रुति: – श्रवणस्वरूप ।
537.वच: – वाणीस्वरूप ।
538.घ्राण: – नासिकास्वरूप ।
539.गन्ध: – गंधरूप ।
540.स्पर्शनम्: – स्पर्शरूप ।
541.स्पर्श: – सम्पर्क- ज्ञानस्वरूप ।
542.अहङ्कारमानग: – अहंकार के स्वरूप को प्राप्त होनेवाले ।
543.नेतिनेतीतिगम्य: – नेति-नेति शब्दों द्वारा गम्य ।
544.वैकुण्ठ भजन प्रिय: – भगवान् के भजन में प्रीति रखनेवाले ।
545.गिरीश: – पर्वतों के ईश ।
546.गिरिजाकान्त: – माता पार्वती के प्रिय शंकरस्वरूप ।
547.दुर्वासा: – दुर्वासा मुनिस्वरूप ।
548.कवि: – कविस्वरूप ।
549.अङ्गिरा: – अङ्गिरा मुनिरूप ।
550.भृगु: – भृगु मुनिस्वरूप ।
551.वसिष्ठ: – वशिष्ठ्मुनिस्वरूप ।
552.च्यवन: -च्यवन ऋषिस्वरूप ।
553.नारद: – नारदमुनिस्वरूप ।
554.तुम्बर: – तुम्बरु गंधर्वस्वरूप ।
555.अमल: – दोषरहित ।
556.विश्वक्षेत्र: – विश्वक्षेत्रस्वरूप।
557.विश्वबीज: – विश्वबीज अर्थात् कारणस्वरूप ।
558.विश्वनेत्र: – सर्वद्रष्टा ।
559.विश्वप: – विश्वके पालक ।
560.याजक: – यज्ञकर्मा ।
561.यजमान: – प्रधान होतारूप ।
562.पावक: – अग्निरूप ।
563.पितर: – जगत् के माता पिता ।
564.श्रद्धा: – श्रद्धास्वरूप ।
565.बुद्धि: – बुद्धिस्वरूप ।
566.क्षमा: – क्षमास्वरूप ।
567.तन्द्रा: – तंद्रारूप ।
568.मन्त्र: – मंत्रस्वरूप ।
569.मन्त्रयिता : – शुभ मंत्र देनेवाले ।
570.सुर: – देवस्वरूप ।
571.राजेन्द्र: – राजाओं में श्रेष्ठ ।
572.भूपती: – पृथ्वी के पालक ।
573.रुण्डमाली: – रुण्डों के मालावाले ।
574.संसार सारथि: – भक्तों को भवसिन्धु पार करने में सहायक ।
575.नित्य सम्पूर्ण काम: – सदा सभी कामनाओं से तृप्त ।
576.भक्त कामधुक्: – भक्तों की कामनाओं के दोग्धा ।
577.उत्तम: – श्रेष्ठ ।
578.गणप: – वानरगणों के पालक ।
579.केशव: – घुँघराले केशवाले ।
580.भ्राता: – भ्रातृस्वरूप ।
581.पिता: – पितारूप ।
582.माता: – वात्सल्यमयी मातारूप ।
583.मारुति: – पवनदेवता के पुत्र ।
584.सहस्रमूर्द्धा: – हजारों सिरवाले ।
585.अनेकास्य: – अनेक मुखवाले ।
586.सहस्राक्ष: – सहस्त्रों नेत्रवाले ।
587.सहस्रपात्: – सहस्त्रों पैरवाले ।
588.कामजित्: – कामदेव को जीतनेवाले ।
589.कामदहन: – काम को जलानेवाले ।
590.काम: – सौन्दर्यशाली ।
591.कामफलप्रद: – कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।
592.मुद्रापहारी: – श्रीराम मुद्रिका को ले जानेवाले ।
593.रक्षोघ्न: – राक्षसों का नाशकरनेवाले ।
594.क्षिति भारहा: – पृथ्वी का भार उतारनेवाले ।
595.बल: – शत्रु- सन्हारक ।
596.नखदंष्ट्रायुध: – नख और दंष्ट्रारूप शस्त्र धारण करनेवाले ।
597.विष्णु: – व्यापकस्वरूप ।
598.भक्ताभय वरप्रद: – भक्त को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
599.दर्पहा: – दर्प का नाश करनेवाले ।
600.दर्पद: – उत्साह प्रदान करनेवाले ।
601.दंष्ट्रा: शत मूर्ति: – सौ दंष्ट्राओं से युक्त मुर्तिवाले ।
602.अमूर्तिमान्:- मूर्तिरहित अर्थात् निराकारस्वरूप ।
603.महानिधि: – सद्गुणों के महान् भण्डार ।
604.महाभाग: – बड़े भाग्यशाली ।
605.महाभर्ग: – महातेजस्वी ।
606.महार्द्धिद: – महान् ऋषि प्रदान करनेवाले ।
607.महाकार: – बड़े आकारवाले ।
608.महायोगी: – महान् योगी ।
609.महातेजा: – बड़े तेजस्वी ।
610.महाद्युति: -अत्यंत शोभावाले ।
611.महासन: – अत्यंत स्थिर आसनवाले ।
612.महानाद: – बड़ी गर्जना करनेवाले ।
613.महामन्त्र: – उच्चकोटि के मंत्रवाले ।
614.महामति: – महान् बुद्धिवाले ।
615.महागम: – महान् गतिवाले ।
616.महोदार: – बड़े उदार ।
617.महादेवात्मक: – महादेवस्वरूप ।
618.विभु: – सर्वव्यापक ।
619.रौद्रकर्मा: – भयामक कर्म करनेवाले ।
620.क्रूरकर्मा: – कठोर कर्म करनेवाले ।
621.रत्नाभ: – रत्न के समान नाभिवाले ।
622.कृतागम: – शास्त्रकी रचना करनेवाले ।
623.अम्भोधि लङ्घन: – समुद्र लाँघनेवाले ।
624.सिंह: – सिंहस्वरूप ।
625.सत्यधर्म प्रमोदन: – सत्यधर्म का पालन करनेमें प्रसन्न ।
626.जितामित्रो: – शत्रुओं को जीतनेवाले ।
627.जय: – जयस्वरूप ।
628.सोम: – सोमस्वरूप ।
629.विजयी: – पराक्रमी ।
630.वायुनन्दन: – पवनदेवता को आनंदित करनेवाले ।
631.जीवदाता: – प्राणदान करनेवाले ।
632.सहस्रांशु: – सूर्यस्वरूप ।
633.मुकुन्द: – मुक्तिप्रदान करनेवाले ।
634.भूरिदक्षिण: – विपुल दक्षिणा प्रदान करनेवाले ।
635.सिद्धार्थ: – सदासिद्ध प्रयोगवाले ।
636.सिद्धिद: – सिद्धि देनेवाले ।
637.सिद्ध सङ्कल्प: – सिद्ध संकल्पवाले ।
638.सिद्धि हेतुक: – सिद्धियों के कारण ।
639.सप्तपातालचरण: – सप्तपाताल में संचरण करनेवाले ।
640.सप्तर्षिगणवन्दित: – सप्तऋषियों द्वारा वंदित ।
641.सप्ताब्धिलङ्घन: – सातों समुद्रों को लाँघनेवाले ।
642.वीर: – संदेश पहुँचानेवालों में वीर ।
643.सप्तद्वीपोरुमण्डल: – सप्तद्वीप के विशाल मण्डल में विचरण करनेवाले ।
644.सप्ताङ्गराज्यसुखद: – सप्ताङ्ग़युक्त राज्य के लिये सुखद ।
645.सप्तमातृनिषेवित: – सात माताओं द्वारा सेवित ।
646.सप्तस्वर्लोकमुकुट: – सात स्वर्गलोकों के मुकुटमणि ।
647.सप्तहोता: – सामवेद के सात मंत्रों से हवन करनेवाले ।
648.स्वाराश्रय: – स्वरों का आश्रय लेनेवाले अर्थात् संगीत- शास्त्रों में प्रवीण ।
649.सप्तच्छन्दोनिधि: – सात वैदिक छंदों के आश्रय ।
650.सप्तच्छन्द: – सात छन्दस्वरूप ।
651.सप्तजनाश्रय: – सप्तजनों के आश्रयस्वरूप ।
652.सप्तसामोपगीत: – जिनका सामवेद की सात स्वरोंद्वारा गान किया जाता है ।
653.सप्तपाताल संश्रय: – सप्तपाताल के आश्रय ।
654.मेधाद: – मेधा को प्रदान करनेवाले ।
655.कीर्तिद: – यश देनेवाले ।
656.शोकहारी: – शोक हरण करनेवाले ।
657.दौर्भाग्यनाशन: – दुर्भाग्य का नाश करनेवाले ।
658.सर्वरक्षाकर: -चारों ओर से रक्षा करनेवाले ।
659.गर्भदोषहा: – गर्भ-दोष को दूर करनेवाले ।
660.पुत्रपौत्रद: – पुत्र और पौत्र प्रदान करनेवाले ।
661.प्रतिवादिमुखस्तम्भ: – प्रतिवादी के मुख को बंद करनेवाले अर्थात् श्रेष्ठ वक्ता ।
662.रुष्टचित्तप्रसादत: – रूष्टचित्तवालों को प्रसन्न करनेवाले ।
663.पराभिचारशमन: – शत्रु के मारण- मोहन आदि अभिचारों को शमन करनेवाले ।
664.दुःखहा: – दु:खों का नाश करनेवाले ।
665.बन्धमोक्षद:- बंधनसे मुक्त करनेवाले ।
666.नवद्वारापुराधार : – नवद्वारपुर (शरीर ) के आधार ।
667.नवद्वारनिकेतन: – नवद्वारवाले शरीररूपी घर में रहनेवाले आत्म-स्वरूप ।
668.नरनारायण स्तुत्य: – नर और नारायण के द्वारा स्तुत्य ।
669.नवनाथ महेश्वर: – नवनाथों के महेश्वर ।
670.मेखली: – मेखला धारण करनेवाले ।
671.कवची: – कवच धारण करनेवाले ।
672.खंगी: – खड्ग धारण करनेवाले ।
673.भ्राजिष्णु: – देदीप्यमान ।
674.जिष्णुसारथि: – अर्जुन के सारथि अर्थात् ध्वजा में निवास करनेवाले ।
675.बहुयोजनविस्तीर्णपुच्छ: – अनेक योजन लम्बी पूँछवाले ।
676.पुच्छहतासुर: – पूँछसे राक्षसों को मारनेवाले ।
677.दुष्टग्रहनिहन्ता: – दुष्टग्रहों के नाशक ।
678.पिशाचग्रहघातक: – पिशाचग्रह के हन्ता ।
679.बालग्रह विनाशी: – बालग्रहों का विनाश करनेवाले ।
680.धर्मनेता: – धर्म के नेता ।
681.कृपाकार: – कृपा करनेवाले ।
682.उग्रकृत्य: – उग्र कृत्यकर्ता ।
683.उग्रवेग: – भयंकर वेगवान्।
684.उग्रनेत्र: – उग्र नेत्रवाले ।
685.शतक्रतु: – सौ यज्ञ करनेवाले इंद्रस्वरूप ।
686.शतमन्युनुत: – इन्द्रद्वारा स्तुत ।
687.स्तुत्य: – स्तुति करने योग्य ।
688.स्तुति: – स्तुतिस्वरूप ।
689.स्तोता: – स्तुति करनेवाले ।
690.महाबल: – अत्यंत बलशाली।
691.समग्रगुणशाली: – सारे- गुणों से युक्त ।
692.व्यग्र: – सदा उद्यत ।
693.रक्षोविनाशक: – असुरों का विनाश करनेवाले ।
694.रक्षोऽग्निदाह: – राक्षसों को अग्नि में जलादेनेवाले ।
695.ब्रह्मेश: – ब्रह्मा के ऊपर शासन करनेवाले ।
696.श्रीधर: – ऐश्वर्य धारण करनेवाले ।
697.भक्तवत्सल: – भक्तों पर कृपा करनेवाले ।
698.मेघनाद: – मेघ के समान गर्जनेवाले ।
699.मेघरूप: – मेघ के समान रूपवाले ।
700.मेघवृष्टिनिवारक: – मेघ की वृष्टि को रोकनेवाले ।
701.मेघजीवनहेतु: – मेघों के जीवन के हेतु समुद्रस्वरूप ।
702.मेघश्याम: – मेघ के समान श्याम वर्णवाले ।
703.परात्मक: – परमात्मस्वरूप ।
704.समीरतनय: – वायु- देवता के पुत्र ।
705.योद्धा: – शत्रुओं के साथ लड़नेवाले ।
706.नृत्यविद्याविशारद: – नृत्यकला में विशारद ।
707.अमोघ: – कभी व्यर्थ न होनेवाले ।
708.अमोघदृष्टि: – जिनकी कृपादृष्टि कभी व्यर्थ नहीं जाती ।
709.इष्टद: – मनोवाञ्छित वस्तु देनेवाले ।
710.अरिष्टनाशन: – विघ्ननाशक ।
711.अर्थ: – अर्थस्वरूप ।
712.अनर्थापहारी: – अनर्थ को दूर करनेवाले ।
713.समर्थ: – सर्वथा सामर्थ्यवान् ।
714.रामसेवक: – श्रीराम के सेवक ।
715.अर्थिवन्द्य: – अर्थियों के द्वारा वन्दनीय ।
716.असुराराति: – असुरों के शत्रु।
717.पुण्डरीकाक्ष: – श्वेतकमल के समान नेत्रवाले अर्थात् विष्णुस्वरूप ।
718.आत्मभू: – स्वेच्छासे प्रकट होनेवाले ।
719.सङ्कर्षण: – शत्रुओं को कर्षण करनेवाले बलदेवस्वरूप ।
720.विशुद्धात्म: – परम पवित्रस्वरूप ।
721.विद्यारात्रि: – विद्या की राशि – पूर्ण विद्वान ।
722.सुरेश्वर: – देवताओं के स्वामी ।
723.अचलोद्धारको: – अचलों (पर्वतों ) – का उद्धार करनेवाले ।
724.नित्य: – नित्य विद्यमान ।
725.सेतुकृत्: – सेतु बनानेवाले ।
726.रामसारथि: – श्रीराम के वाहन ।
727.आनन्द: – आनंद प्रदान करनेवाले ।
728.परमानन्द: – परमानन्दास्वरूप ।
729.मत्स्य: – मत्स्यस्वरूप ।
730.कूर्म: – कूर्मस्वरूप ।
731.निराश्रय: – आश्रयरहित ।
732.वाराह: – वाराहस्वरूप ।
733.नारसिंह: – नृसिन्हस्वरूप ।
734.वामन: – वामनस्वरूप ।
735.जमदग्निज: – परशुरामस्वरूप ।
736.राम: – श्रीरामस्वरूप ।
737.कृष्ण: – श्रीकृष्णस्वरूप ।
738.शिव: – शिवास्वरूप ।
739.बुद्ध: – बुद्धस्वरूप ।
740.कल्कि: – कल्किस्वरूप
741.रामाश्रय: – श्री राम के आश्रित ।
742.हरि: – जगत् का दु:ख हरनेवाले ।
743.नन्दी: – नन्दीस्वरूप ।
744.भृंगी: – भृङ्गीस्वरूप ।
745.चण्डी: – देवीस्वरूप ।
746.गणेश: – गणपतिरूप ।
747.गणसेवित: – वानरगणोंद्वारा सेवित ।
748.कर्माध्यक्ष: – कर्मों के स्वामी ।
749.सुराध्यक्ष: – देवताओं के अध्यक्ष ।
750.विश्राम: – सब प्राणियों के विश्रामस्थल ।
751.जगतीपति: – पृथ्वी का पालन करनेवाले ।
752.जगन्नाथ: – जगत् के स्वामी ।
753.कपीश: – वानरों के स्वामी ।
754.सर्वावास: – सबके निवासस्थान ।
755.सदाश्रय: – परमार्थपथ पर चलनेवालोंके आश्रय ।
756.सुग्रीवादिस्तुत: – सुग्रीव आदि वानर जिनकी स्तुति करते हैं ।
757.दान्त: – इन्द्रियों को वश में रखनेवाले ।
758.सर्वकर्मा: – कृतकृत्य ।
759.प्लवङ्गम: – वानररूप ।
760.नखदारितरक्षा: – नखों के दवारा राक्षसों को विदीर्ण करनेवाले ।
761.नखयुद्धविशारद: – नखयुद्ध में कुशल ।
762.कुशल: – परम निपुण ।
763.सुधन: – भक्तिरूपी ।
764.शेष: – शेषनागस्वरूप।
765.वासुकि: – वासुकिसर्पस्वरूप ।
766. तक्षक: – तक्षक स्वरूप ।
767.स्वर्णवर्ण: – सोने के समान दीप्तवर्णवाले ।
768.बलाढ्य: – अति शक्तिशाली
769.पुरुजेता: – बहुल विजयी ।
770.अघनाशन: – पाप का नाश करनेवाले ।
771.कैवल्यरूप: – मुक्तिस्वरूप ।
772.कैवल्य: – अद्वयस्वरूप ।
773.गरुड़: – गरुड़रूप ।
774.पन्नगोरग: – लेटे-लेटे चलनेवाले तथा उरसे चलनेवाले अर्थात् हनुमान् जी सब प्रकार से चलनेवाले हैं ।
775.किल्किल् रावहताराति: – किल – किल शब्द से शत्रुओं का नाश करनेवाले ।
776.गर्वपर्वतभेदन: – गर्वरूप पर्वत को काट गिरानेवाले ।
777.वज्राङ्ग: – वज्र शरीर ।
778.वज्रदंष्ट्र: – वज्र के समान दाँतवाले
779.भक्तवज्रनिवारक: – भक्तों के ऊपर गिरते हुए वज्र को रोकनेवाले ।
780.नखायुध: – नख जिनके शस्त्र हैं ।
781.मणिग्रीव: – कण्ठ में मणि धारण करनेवाले ।
782.ज्वालामाली: – लंकादाह के समय अग्नि- ज्वालाकी माला धारण करनेवाले ।
783.भास्कर: – सूर्य के समान प्रकाशस्वरूप ।
784.प्रौढप्रताप: – प्रवृद्ध प्रतापवाले
785.तपन: – सूर्यरूप।
786.भक्तताप निवारक: – भक्तों का संताप दूर करनेवाले ।
787.शरणम्: – शरणागत – रक्षक ।
788.जीवनम्: – सबके जीवनस्वरूप ।
789.भोक्ता: – सबको पालन करनेवाले ।
790.नानाचेष्ट: – अनेक चेष्टावाले ।
791.अचञ्चल: – स्वरूप में अटल रहनेवाले ।
792.स्वस्तिमान्: – कल्याणस्वरूप ।
793.स्वस्तिद: – कल्याण वितरण करनेवाले ।
794.दुःखनाशन: – दु:खों के नाशक ।
795.पवनात्मज: – पवन के पुत्र ।
796.पावन: – पवित्र करनेवाले ।
797.पवन: – वायुरूप ।
798.कान्ता: – कांतिमान् ।
799.भक्तागःसहन: – भक्तों के अपराधों को सहन करनेवाले ।
800.बली: – बलवान्।
801.मेघनादरिपु: – मेघनाद के शत्रु ।
802.मेघनादसंहतराक्षस: – जिनकी मेघ – तुल्य गर्जना से राक्षस नष्ट हो जाते हैं ।
803.क्षर: – प्रकृतिकार्यस्वरूप ।
804.अक्षर: – अविनाशी आत्मस्वरूप ।
805.विनीतात्मा: – विनम्र –स्वभाव ।
806.वानरेश: – वानरों के ईश ।
807.सताङ्गति: – संतों की गति ।
808.श्रीकण्ठ: – शोभायमान कण्ठवाले ।
809.शितिकण्ठ: – नीलकण्ठ भगवान् शंकरस्वरूप ।
810.सहाय: – सहायता करनेवाले ।
811.सहनायक: – अपने स्वामी श्रीराम के साथ रहनेवाले ।
812.अस्थूल: – सूक्ष्मस्वरूप ।
813.अनणु: – महान् ।
814.भर्ग: – आभायुक्त ।
815.दिव्य: – दिव्यरूपधारी ।
816.संसृतिनाशन: – भवबंधन को मिटानेवाले ।
817.अध्यात्म विद्यासार: – अध्यात्मविद्या के सार-तत्व ।
818.अध्यात्म कुशल: – अध्यात्मविद्या में कुशल।
819.सुधी: – सुंदर बुद्धिवाले ।
820.अकल्मष: – निष्पाप ।
821.सत्यहेतु: – सत्यस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति करानेवले ।
822.सत्यद: – सत्य प्रदान करनेवाले ।
823.सत्यगोचर: – सत्य से दृष्टिगोचर होनेवाले ।
824.सत्यगर्भ: – सत्य आशयवाले 825.सत्यरूप: – सत्य ( प्रशस्त ‌) रूप –सौंदर्य से युक्त ।
826.सत्य: – सत्यस्वरूप ।
827.सत्यपराक्रम: – जिनका पराक्रम निष्फल नहीं होता ।
828.अञ्जनाप्राणलिङ्ग: – माता अंजना के प्राणप्यारे पुत्र ।
829.वायुवंशोद्भव: – वायुदेवता के वंशमें उत्पन्न ।
830.शुभ: – कल्याणप्रद ।
831.भद्ररूप: – मङ्गलमय स्वरूपवाले ।
832.रुद्ररूप: – शंकरस्वरूप ।
833.सुरूप: – सुन्दर स्वरूपवाले ।
834.चित्ररूपधृक्: -चित्र- विचित्र रूप धारण करनेवाले ।
835.मैनाकवन्दित: – मैंनाकपर्वतद्वारा वंदित ।
836.सूक्ष्मदर्शन: – सूक्ष्मदृष्टि वाले ।
837.विजय: – अर्जुनस्वरूप ।
838.जय: – विष्णु के दवारपालस्वरूप ।
839.क्रान्तदिङ्मण्डल: – दिशाओं के पार जानेवाले ।
840.रुद्र: – आर्द्रानक्षत्ररूप ।
841.प्रकटीकृतविक्रम: – अपने पराक्रम को प्रकट करनेवाले ।
842.कम्बुकण्ठ: – शंख के समान सुंदर गर्दनवाले ।
843.प्रसन्नात्मा: – सदा प्रसन्न चित्त रहनेवाले ।
844.ह्रस्वनास: – छोटी नासिकावाले ।
845.वृकोदर: – भेड़ियों के समान बड़े उदरवाले ।
846.लम्बौष्ठ: – बड़े-बड़े ओठवाले ।
847.कुण्डली: – कानों मे कुण्डल धारण करनेवाले ।
848.चित्रमाली: – चित्र- विचित्र पुष्पों की माला पहननेवाले ।
849.योगविदां वर: – योगवेत्तओं में श्रेष्ठ ।
850.विपश्चितकवि – तत्वज्ञ कवि ।
851.आनन्दविग्रह: – मूर्तिमान् आनंद ।
852.अनल्पशासन: -सबके ऊपर शासन करनेवाले ।
853.फाल्गुनी सूनु: – पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे उत्पन्न होनेवाले फाल्गुनीपुत्र ।
854.अव्यग्र: – कभी व्याकुल न होनेवाले ।
855.योगात्मा: – योगस्वरूप ।
856.योगतत्पर: – योग में तत्पर रहनेवाले ।
857.योगवित्: – योग के ज्ञाता ।
858.योगकर्ता: – योग को बनानेवाले ।
859.योग योनि: – योग की उत्पत्तिके कारण ।
860.दिगम्बर: – दिशारूपी वस्त्रधारी ।
861.अकारादिहकारान्तवर्णनिर्मित विग्रह: – सर्ववर्णस्वरूप ।
862.उलूखलमुख: – ओखली के समान मुखार-विंदवाले ।
863.सिद्धसंस्तुत: – सिद्धपुरुषों के दवारा जिनकी सम्यक् रीति से स्तुति होती है ।
864.प्रमयेश्वर: – भूतगणों के स्वामी ।
865.श्लिष्टजङ्घ: – सटी हुई जंघावाले ।
866.श्लिष्टजानु: – मिले हुए घुटनोंवाले ।
867.श्लिष्टपाणि: – मिले हुए हाथोंवाले ।
868.शिखाधर: – चोटी धारण करनेवाले ।
869.सुशर्मा: – सुंदर सुख देनेवाले ।
870.अमितशर्मा: – असीम सुख देनेवाले ।
871.नारायण परायण: – भगवान् नारायण में लीन रहनेवाले ।
872.जिष्णु: -जीतनेवाले ।
873.भविष्णु: – भविष्य में होनेवाले ।
874.रोचिष्णु: – कांतिमान्।
875.ग्रसिष्णु: – सर्वसन्हार करनेवाले शिवस्वरूप ।
876.स्थाणु: – स्थिर रहनेवाले ।
877.हरिरुद्रानुसेक: – भगवान् विष्णु और शंकर का अभिषेक करनेवाले ।
878.कम्पन: – शत्रुओं को कम्पित करनेवाले ।
879.भूमिकम्पन: – पृथ्वी को कम्पित करनेवाले ।
880.गुण प्रवाह: – गुणों के प्रवाह अर्थात् सर्वगुणसमपन्न ।
881.सूत्रात्मा: – यज्ञोपवीतधारी ।
882.वीतराग स्तुतिप्रिय: – वीतराग पुरुष के द्वारा की गयी स्तुति जिन्हें प्रिय लगती है ।
883.नागकन्याभयध्वंसी: – नागकन्याओं के भय का ध्वंस करनेवाले ।
884.रुक्मवर्ण: – सुवर्ण के समान वर्णवाले ।
885.कपालभृत: – कपाल धारण करनेवाले ।
886.अनाकुल: – व्यग्रतारहित ।
887.भवोपाय: – भवसागर पार करने के लिये उपायरूप ।
888.अनपाय: – भगवान् श्रीराम से कभी वियुक्त न होनेवाले ।
889.वेदपारग: – वेदों में पारंगत ।
890.अक्षर: – अविनाशी ।
891.पुरुष: – बुद्धिरूपी पुरी में सोनेवाले ।
892.लोकनाथ: – सम्पूर्ण लोकों के स्वामी ।
893.ऋक्षःप्रभु: -नक्षत्रों के स्वामी अर्थात् चंद्रस्वरूप ।
894.दृढ: – हृष्ट – पुष्ट शरीर ।
895.अष्टाङ्गयोगफलभुक्: – अष्टाङ्गयोग के फलका उपभोग करनेवाले ।
896.सत्यसन्घ: – दृढ़ मैत्रीवाले ।
897.पुरुष्टुत: – – देवताओं के द्वारा संस्तुत ।
898.श्मशानस्थाननिलय: – श्मशान में निवास करनेवाले ।
899.प्रेतविद्रावणक्षम: – प्रेत को तुरंत भगाने में समर्थ ।
900.पञ्चाक्षरपर: – ‘ नम : शिवाय ’ इस प्रधान पञ्चाक्षर मंत्र को जपनेवाले ।
901.पञ्चमातृक: – सीता, उर्मिला , माण्डवी ,श्रुतिकीर्ति और अंजना – इन पाँच माताओंवाले ।
902.रञ्जनध़्वज: – लाल रंग की ध्वजावाले ।
903.योगिनीवृन्द वन्द्य श्री: – योगिनीवृन्द के द्वारा वन्दनीय शोभास्वरूप।
904.शत्रुघ्न: – शत्रुओं को हनन करनेवाले ।।
905.अनन्त विक्रम: – अपार पराक्रमशाली ।
906.ब्रह्मचारी: – ब्रह्म में विचरण करनेवाले ।
907.इन्द्रियरिपु: – इंद्रियों के शत्रु अर्थात् जितेंद्रिय ।
908.धृतदण्ड: – दण्दधारी ( गदाधारी )।
909.दशात्मक: – दशावतारस्वरूप ।
910.अप्रपञ्च: – संसार के प्रपञ्चसे रहित ।
911.सदाचार: – सदाचारयुक्त ।
912.शूरसेनाविदारक: – शूर पुरुषों की सेना को विदीर्ण करनेवाले ।
913.वृद्ध: – सब प्रकार से बड़े ।
914.प्रमोद: – प्रमोद-वृतिस्वरूप ।
915.आनन्द: – आनंद स्वरूप ।
916.सप्तद्वीपपतिन्धर: – सप्तद्वीपपतियों को धारण करनेवाले ।
917.नवद्वारपुराधार: – नवद्वारवाले पुर अर्थात् शरीरों के आधार ।
918.प्रत्यग्र: – सबके आगे चलनेवाले ।
919.सामगायक: – सामवेद का गान करनेवाले ।
920.षट्चक्रचाम: – सहस्त्रार आदि षट्चक्रों में परमात्मरूप से निवास करनेवाले ।
921.स्वर्लोकाभयकृत: -स्वर्गलोक को अभय करनेवाले ।
922.मानद: – मान देनेवाले ।
923.मद: – सम्पूर्ण अहंकृतिरूप ।
924.सर्ववश्यकर: – सबको वश में करनेवाले ।।
925.शक्ति: – शक्तिस्वरूप ।
926.अनन्त: – जिनके गुणों का अंत नहीं है ।
927.अनन्तमङ्गल: – जो अनंत मंगलों से पूर्ण हैं ।
928.अष्टमूर्ति: – पंच भूत, सुर्य , चंद्र , और आत्मा -ये आठ जिनकी मूर्ति अर्थात् स्वरूप हैं ।
929.नयोपेत: – नीतिमान्।
930.विरूप: – विविध रूपवाले ।
931.सुरसुन्दर: – देवताओं से भी अधिक सुंदर ।
932.धूमकेतु: – अग्निस्वरूप ।
933.महाकेतु: – विशाल बुद्धिवाले ।
934.सत्यकेतु: – जिनका सत्य आदर्श है ।
935.महारथ: – महारथी ।
936.नन्दिप्रिय: – नन्दि( शिववाहन ) जिनके प्रिय हैं ।
937.स्वतन्त्र: – जो किसी के अधीन नहीं हैं ।
938.मेखली: – कटिसूत्र धारण करनेवाले ।
939.डमरुप्रिय: – जिनको डमरू प्रिय है उस शिव के स्वरूप ।
940.लौहाङ्ग: – लोहे के समान दृढ़ शरीरवाले ।
941.सर्ववित्: – सब कुछ जाननेवाले।
942.धन्वी: – धनुर्धर ।
943.खण्डल: – द्रोणागिरि को खण्डित कर लानेवाले ।
944.शर्व: – शिवस्वरूप ।
945.ईश्वर: – ईश्वरस्वरूप ।
946.फलभुक्: – फल खानेवाली वानररूप ।
947.फलहस्त: – जिनके करकमल में फल है ।
948.सर्वकर्मफलप्रद: – सब कर्मों का फल प्रदान करनेवाले ।
949.धर्माध्यक्ष: – धर्म-निधि के अध्यक्ष ।
950.धर्मपाल: – धर्म का पालन करनेवाले । ।
951.धर्म: – धर्मस्वरूप ।
952.धर्मप्रद: – न्यायधर्म के दाता ।
953.अर्थद: – अर्थ प्रदान करनेवाले ।
954.पञ्चविंशतितत्त्वज्ञ: – पचीस तत्वों के यथार्थ ज्ञाता ।
955.तारक: – भवसागर से तारनेवाले ।
956.ब्रह्मतत्पर: – परब्रह्म में तत्पर ।
957.त्रिमार्गवसति: – ज्ञानयोग , भक्तियोग और कर्मयोग – इन तीनों मार्गों के निवास-स्थल ।
958.भीम: – भयंकरस्वरूप ।
959.सर्वदुःख निबर्हण: – सारे दु:खों को दूर करनेवाले ।
960.ऊर्जस्वान्: – बलशाली ।
961.निष्कल: – निर्गुण ब्रह्मस्वरूप ।
962.शूलि: – शूल धारण करनेवाले ।
963.मौलि: – किरीट धारण करनेवाले ।
964.गर्जन्निशाचर: – रात्रि में गर्जते हुए विचरण करनेवाले अर्थात् नि:शंक ।
965.रक्ताम्बरधर: – लाल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
966.रक्त: – लाल वर्णवाले ।
967.रक्तमाल्य: – लाल रंग की माला से सुशोभित ।
968.विभूषण: – अलंकारस्वरूप ।
969.वनमाली: – वन्य पुष्पों की माला पहननेवाले ।
970.शुभाङ्ग: – मंगलस्वरूप ।
971.श्वेत: – श्वेत स्वरूप ।
972.श्वेताम्बर: – शुक्ल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
973.युवा: – सदा तरुणस्वरूप।
974.जय: – विजेता ।
975.अजयपरीवार: – जिसका विजय ही परिवार है ।
976.सहस्रवदन: – सहस्त्र मुखवाले ।
977.कपि: – कपिस्वरूप ।
978.शाकिनी डाकिनी यक्षरक्षो भूतप्रभञ्जक: – शाकिनी, डाकिनी , यक्ष , राक्षस,भूत आदिका नाश करनेवाले ।
979.सद्योजात: – तुरंत प्रकट होनेवाले।
980.कामगति: -स्वच्छंद घूमनेवाले ।
981.ज्ञानमूर्ति: – ज्ञान की साक्षात मूर्ति ।
982.यशस्कर: – यशस्वी।
983.शम्भुतेजा: – भगवान् शंकर के समान तेजस्वी ।
984.सार्वभौम: – सब संसार के अधिपति ।
985.विष्णुभक्त: – भगवान् विष्णु के भक्त।
986.प्लवङ्गम: – मर्कटस्वरूप ।
987.चतुर्नवतिमन्त्रज्ञ: – चौरानबे मंत्रों के ज्ञाता ।
988.पौलस्त्यबलदर्पहा: – रावण के बल के घमंड को नष्ट करनेवाले ।
989.सर्वलक्ष्मीप्रद: – सारे ऐश्वर्य को प्रदान करनेवाले ।
990.श्रीमान: – सर्वैश्वर्यशाली ।
991.अङ्गदप्रिय: – अंगद के प्यारे ।
992.ईडित: – स्तुत्य ।
993.स्मृतिबीजम् – स्मृतियों के बीज ।
994.सुरेशान: – देवताओं के स्वामी ।
995.संसार भय नाशन: – संसार के भय का नाश करनेवाले ।
996.उत्तम: – श्रेष्ठ ।
997.श्रीपरीवार: – श्री ( माता जानकी ) – के पुत्र ।
998.श्रित: – आश्रयवान्।
999.रुद्र: – रुद्रस्वरूप ।
1000. कामधुक्: – सारी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।

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Shiv

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3 thoughts on “हनुमानजी सहस्त्रनामावली (के 1000 नाम) हिन्दी में | Hanuman Sahasranamam 1008 Names

  • इन सहस्त्र नामो डाउनलोड लिंक होना चाइये। और हनुमान सहस्त्र नाम पाठ / स्त्रोत कि पंक्तियों के अनुसार हिंदी अर्थ उपलब्ध कराने का कष्ट करे ।

    Reply
    • जी, विचारणीय है एवं शीघ्र उपलब्ध होगा।

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