हृदउ न बिदरेउ पंक जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु। जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु॥146॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
हृदउ न बिदरेउ पंक जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु।
जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु॥146॥
भावार्थ:
प्रियतम (श्री रामजी) रूपी जल के बिछुड़ते ही मेरा हृदय कीचड़ की तरह फट नहीं गया, इससे मैं जानता हूँ कि विधाता ने मुझे यह ‘यातना शरीर’ ही दिया है (जो पापी जीवों को नरक भोगने के लिए मिलता है)॥146॥
English :
IAST :
Meaning :