होहु सँजोइल रोकहु घाटा। ठाटहु सकल मरै के ठाटा॥ सनमुख लोह भरत सन लेऊँ। जिअत न सुरसरि उतरन देऊँ॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
होहु सँजोइल रोकहु घाटा। ठाटहु सकल मरै के ठाटा॥
सनमुख लोह भरत सन लेऊँ। जिअत न सुरसरि उतरन देऊँ॥1॥
भावार्थ:
सुसज्जित होकर घाटों को रोक लो और सब लोग मरने के साज सजा लो (अर्थात भरत से युद्ध में लड़कर मरने के लिए तैयार हो जाओ)। मैं भरत से सामने (मैदान में) लोहा लूँगा (मुठभेड़ करूँगा) और जीते जी उन्हें गंगा पार न उतरने दूँगा॥1॥
English :
IAST :
Meaning :