अंतर प्रेम तासु पहिचाना। मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना॥9॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
तृतीय सोपान | Descent Third
श्री अरण्यकाण्ड | Shri Aranya-Kand
चौपाई :
अंतर प्रेम तासु पहिचाना।
मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना॥9॥
भावार्थ:
सुजान (सर्वज्ञ) श्री रामजी ने उसके हृदय के प्रेम को पहचानकर उसे वह गति (अपना परमपद) दी जो मुनियों को भी दुर्लभ है॥9॥
English :
IAST :
Meaning :