अति बिचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेन जनु साजी॥ चलत कटक दिगसिंधुर डगहीं। छुभित पयोधि कुधर डगमगहीं॥3
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
षष्ठः सोपानः | Descent 6th
श्री लंकाकाण्ड | Shri Lanka Kand
चौपाई :
अति बिचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेन जनु साजी॥ चलत कटक दिगसिंधुर डगहीं। छुभित पयोधि कुधर डगमगहीं॥3॥
भावार्थ:
अत्यंत विचित्र फौज शोभित है। मानो वीर वसंत ने सेना सजाई हो। सेना के चलने से दिशाओं के हाथी डिगने लगे, समुद्र क्षुभित हो गए और पर्वत डगमगाने लगे॥3॥
IAST :
Meaning :