“अधम ते अधम अधम अति नारी” का मर्म
॥ मानस संबंधित भ्रांति एवं निवारण ॥
अरण्य कांड की एक चौपाई की जो 34वें श्लोक के बाद आती है.
अधम ते अधम अधम अति नारी | तिन्ह महँ मैं मतिमन्द अघारी ||
कुछ लोग इस चौपाई का इस्तेमाल भी “तुलसीदास जी” के उपर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए करतें है. तो आइए इस चौपाई की गहराई भी जाने.
ये चौपाई अरण्य कांड में उस समय आती है जब “शबरी” “राम जी” के सामने हाथ जोड़कर कहती है की………..
पानि जोरि आगें भई ठाढी | प्रभुही बिलोकी प्रीति अति बाढ़ि ||
केहि बिधि अस्तुति करूँ तुम्हारी | अधम जाती मैं जड़मति भारी ||
अधम ते अधम अधम अति नारी | तिन्ह महँ मैं मतिमन्द अघारि ||
कह रघुपति सुनू भामिनी बाता | मानाउँ एक भागति कर नाता ||
ज़ाती पँति कुल धर्म बड़ाई | धन बल परिजन गुण चतुराई ||
भगति हीन नर सोहइ कैसा | बिनु जल बरिद देखिअ जैसा ||
नावधा भागती कहउँ तोहि पाहि | सावधान सुनू धरू मन माही ||
यहाँ पर भी ये बात “शबरी” द्वारा कही ज़ाती है. और ये कहते ही भगवान राम जी “शबरी” से कहते हैं. की हे – भामिनी. मेरी बात सुन. मैं तो केवल एक भक्ती ही का संबंध मानता हूँ.
ज़ाती, पाँति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता – इन सबके होनेपर भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है. वैसे ही जैसे जलहिन बादल.
देखिए ये सभी बातें संवाद के अंदर लिखी गई हैं. इनको गहराई से जानना आवश्यक है.
तुलसीदास जी “नारी” के बारे में क्या कहते हैं वो देखिए…..बाल कांड के प्रारंभ में ही तुलसीदास जी सीता (नारी शक्ति) के बारे में कहते है.
उद्भवस्थितिसंहारकारिणी क्लेशहरिणीम् |
सर्वश्रेयस्कारीं सीता नतोऽहं रामवल्लभाम् ||
व्याख्या – उत्पत्ति, स्थिति(पालन) और संहार करनेवाली, क्लेशों की हरनेवाली तथा संपूर्ण कल्यानो को करनेवाली श्री रामचंद्रजी की प्रियतमा श्री सीताजीको मैं नमस्कार करता हूँ.
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that’s true