अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई। भगत बछल कृपाल रघुराई॥ भरत भाग्य प्रभु कोमलताई। सेष कोटि सत सकहिं न गाई॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई। भगत बछल कृपाल रघुराई॥
भरत भाग्य प्रभु कोमलताई। सेष कोटि सत सकहिं न गाई॥3॥
भावार्थ:
तदनन्तर भक्त वत्सल कृपालु प्रभु श्री रघुनाथजी ने तीनों भाइयों को स्नान कराया। भरतजी का भाग्य और प्रभु की कोमलता का वर्णन अरबों शेषजी भी नहीं कर सकते॥3॥
IAST :
Meaning :