आगिल काजु बिचारि बहोरी। करिहहिं चाह कुसल कबि मोरी॥ हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
आगिल काजु बिचारि बहोरी। करिहहिं चाह कुसल कबि मोरी॥
हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई॥4॥
भावार्थ:
परन्तु आगे के काम का विचार करके (श्री रामजी के वन जाने से राक्षसों का वध होगा, जिससे सारा जगत सुखी हो जाएगा) चतुर कवि (श्री रामजी के वनवास के चरित्रों का वर्णन करने के लिए) मेरी चाह (कामना) करेंगे। ऐसा विचार कर सरस्वती हृदय में हर्षित होकर दशरथजी की पुरी अयोध्या में आईं, मानो दुःसह दुःख देने वाली कोई ग्रहदशा आई हो॥4॥
English :
IAST :
Meaning :