आवा परम क्रोध कर मारा। गर्ज घोर रव बारहिं बारा॥ कोपि मरुतसुत अंगद धाए। हति त्रिसूल उर धरनि गिराए॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
षष्ठः सोपानः | Descent 6th
श्री लंकाकाण्ड | Shri Lanka Kand
चौपाई :
आवा परम क्रोध कर मारा। गर्ज घोर रव बारहिं बारा॥
कोपि मरुतसुत अंगद धाए। हति त्रिसूल उर धरनि गिराए॥3॥
भावार्थ:
वह अत्यंत क्रोध का मारा हुआ आया और बार-बार भयंकर शब्द करके गरजने लगा। मारुति (हनुमान्) और अंगद क्रोध करके दौड़े। उसने छाती में त्रिशूल मारकर दोनों को धरती पर गिरा दिया॥3॥
IAST :
Meaning :