उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
उपजइ राम चरन बिस्वासा।
भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा॥5॥
भावार्थ:
तथा श्री रामजी के चरणों में विश्वास उत्पन्न होता है और मनुष्य बिना ही परिश्रम संसार रूपी समुद्र से तर जाता है॥5॥
IAST :
Meaning :