कबित रसिक न राम पद नेहू। तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू॥ भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जो हँसें नहिं खोरी॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 8.2| Caupāī 8.2
कबित रसिक न राम पद नेहू।
तिन्ह कहँ सुखद हास रस एहू॥
भाषा भनिति भोरि मति मोरी। हँसिबे जो हँसें नहिं खोरी॥2॥
भावार्थ:-जो न तो कविता के रसिक हैं और न जिनका श्री रामचन्द्रजी के चरणों में प्रेम है, उनके लिए भी यह कविता सुखद हास्यरस का काम देगी। प्रथम तो यह भाषा की रचना है, दूसरे मेरी बुद्धि भोली है, इससे यह हँसने के योग्य ही है, हँसने में उन्हें कोई दोष नहीं॥2॥
kabita rasika na rāma pada nēhū. tinha kahaom sukhada hāsa rasa ēhū..
bhāṣā bhaniti bhōri mati mōrī. haomsibē jōga haomsēṃ nahiṃ khōrī..
To those who have no taste for poetry nor devotion to the feet of Sri Rama, this undertaking of mine will serve as a subject for delightful mirth. My composition is couched in the popular dialect and my intellect is feeble; hence it is a fit subject for ridicule, and those who laugh shall not incur any blame.